वे पूछते हैं क्या हासिल होगा इस प्रतिरोध से... ? मैं कहता हूँ बस एक लय प्रतिरोध की... जो रूठ सी गई थी कहीं कहीं से टूट सी गई थी... बस एक लय !
हिंदी समय में मणि मोहन की रचनाएँ