उसके हाथों छनते-बिनते राई के कुछ दाने आखिर लुढ़क ही जाते हैं इधर-उधर और उग आते हैं... हर बार घर के आँगन में कुछ इस तरह आ ही जाता है वसंत।
हिंदी समय में मणि मोहन की रचनाएँ