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कविता

उऋण

मणि मोहन


अकसर तो यही होता है
कि सर्जक ही करता है आह्वान
अपने शब्दों का...

पर कभी-कभी
इसके ठीक उलट भी होता है,
जब शब्द खुद पुकारने लगते हैं
अपने सर्जक को !

जो सुन लेता है
अपने ही शब्दों की पुकार
और चल पड़ता है
समय के अंधकार में
शब्दों के पीछे-पीछे
उऋण हो जाता है!
 


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