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कविता

युद्ध

मणि मोहन


किसी और से पहले
खुद से लड़ना होगा

किसी खूबसूरत विचार के खिलाफ
मन के एकदम भीतरी कोने में
जो पनप रहा है
कुछ-कुछ पाप जैसा
उसे उखाड़ना होगा

किसी खूबसूरत स्वप्न के खिलाफ
जेहन में
जो फुँफकार रहा है
एक जहरीला साँप
उसे कुचलना होगा

नष्ट करने होंगे
देह के भीतर
जंग खाते
सैंकड़ों हथियार

अभी तो शेष हैं
असंख्य परछाइयाँ
अधूरी लड़ाइयाँ
खुद के साथ।
 


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