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कविता

अपनी भाषा

मणि मोहन


उदास हुए हम
अपनी भाषा में
मुस्कराए... खिलखिलाए
अपनी भाषा में।

प्रेम पत्र लिखे
लिखीं प्रेम कविताएँ
धड़कते रहे दिल
अपनी भाषा में।

उत्सवों में
रात भर नाचती रही
हमारी भाषा...
भाषा में
मदमस्त हुए हमारे उत्सव।

प्रार्थनाओं में
गूँजती रही हमारी भाषा...
भाषा में
गूँजती रहीं
हमारी प्रार्थनाएँ।

सुख-दुख बहते रहे
दीप बनकर
भाषा की नदी में
दूर तक...
 


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