तुम हो तुम कुछ कहते नहीं बस मुसकरा देते हो और तुम्हारी मुस्कुराहट देती है मुझे शब्दों का पता गिला ये कि तुम कुछ कहते नहीं और मेरे अनकहे शब्द निकल पड़ते हैं तुम्हारी ही खोज में।
हिंदी समय में भारती सिंह की रचनाएँ