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कविता

मुलायम हर्फ
भारती सिंह


बेचैनियों के घोर बीहड़ में
बिलखती रही रूह
वक्त मुझसे दूर सरकता गया
घर कर लेती मेरे भीतर हताशा
कि इसके पहले
मेरे सिरहाने पड़ी
हार्ड बोर्ड बाउंड किताब के
मोटी से कवर को
हल्का-सा ऊपर उठते पाया
मैंने भरकर आँखों में कुछ कुतूहल
अचरज की कुछ बानगी लिए
उस ओर देखा
सहमे-सकुचे से
एक छोटी से नाजुक मुलायम हर्फ ने
मुस्कराते हुए
वहाँ से झाँका
वह संकोचों के बीच दिखा
कुछ उतावला-सी
मैंने हथेली उसकी तरफ बढ़ा दी
वह होकर खुश
उतर आया मेरी हथेलियों पर
सजाकर अपने नन्हें कद पर
मधुर-स्मिता को
खींच ले गया मुझे
हर्फों की सुनहरी दुनिया में।
 


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