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कविता

उसकी याद

ओम नागर


उसकी याद आती हैं तो
कुछ भी याद नहीं रहता उसकी याद के सिवा

खुद को भूल जाना ही
बनता चला जाता है धीरे-धीरे
उसकी याद का प्रमाण

कुछ नहीं बिगाड़ पाती
सरहदों पर खींची गई नुकेले तारों की बाड़
याद करती घुसपैठ

उसकी याद
धार के विपरीत दौड़ती मीन

जो चीर देना चाहती है
गलफड़े फुला-फुलाकर
समुद्र से लिपट जाने को बेताब
नदी का बहता हुआ सीना

उसकी याद
कठफोड़े-सी
जो टीचती रहती है हमेशा भीतर का नीम

यह जानते हुए भी
कि धरती पर पड़ी निमोलियाँ
नहीं खड़ा कर सकेंगी अपना ही कुनबा

उसकी याद
मन की तलहटी पर गिरता हुआ झरना
जहाँ मोतियों में तब्दील हो जाती
पानी की बूँदें

मेरे लिए जिन्हें समेट लेना
आसान नहीं रहा गया है अब।
 


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