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कविता

देश-दिशा से आती हुई खुशबू

ओम नागर


दुनिया भर में कौन सा देश किस दिशा में हैं
इससे क्या फरक पड़ता है भला पृथ्वी को

किसी भी दिशा से देख लीजिए
पृथ्वी सिर्फ
पृथ्वी ही रहेंगी

लेकिन जैसी ही देखने लगेंगे देश
हमारा देखना
हो जाएगा कई हिस्सों में विभाजित

हर देश का
अलग बंकर
अलग रंग
आँख की किरकिरी है बस

वो दिन कब आएगा
जब किसी भी दिशा से देखेंगे हम पृथ्वी
साबुत बची दिखेगी
युद्ध-टैंक के नीचे की हरी कच्ची दूब

मिसाइलों के मुहानों पर उगे होंगे पीपल
बंदूक की नाल में सजे होंगे टहनीदार गुलाब

किसी दिशा में न होगी कोई दीवार
सभी देशों की ओर खुले मिलेंगे
सभी दरवाजे / खिड़कियाँ

सरहदों पर न होगी कोई बाड़
न किसी तोप के निशाने पर होगा
कोई उड़ता परिंदा

सब ओर लगे होंगे फूलों के बागीचें
एक ही क्यारी में खिले होंगे
सभी रंगों के फूल
लाल, नीले, हरे और पीले

काला भी हो तो हो फूलों का रंग

मोल रंग का नहीं होता कभी
और खुशबू का मोल कौन
लगा सकता हैं भला
जो में हवा होती है मुट्ठी में नहीं आती

ये देश-दिशा से आती हुई खुशबू
बारूदी नहीं होगी कभी
जिस भी दिशा से आएगी-जाएगी नथुनों तक
उस हवा में घुली होगी मोगरे की महक।
 


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