पटसन की बोरी, साइकल पर लटकाए,
लोहे का तराजू, कैरियर पर बाँधे,
कितना जरूरी है, वो आदमी,
पुरानी अखबार, कापियाँ,
समेटता, जैसे एलडराडो पा लिया,
अलादीन की तरह,
घुस आया है, चालीस चोरों की गुफा में,
भर रहा है, बोरी में,
काँच, प्लास्टिक की बोतलें,
डंडी मार रहा,
खीज रहा गृहस्वामी,
ये बोतलें, ठूँसते गाड़ी में,
देखा था, मुफ्तखोर,
कहते कहते रुक जाता है,
रद्दी वाला,
बाघ की तरह झपट खाने वाले पाते हैं सम्मान,
और लकड़बग्घे, गीदड़, गीध,
दुत्कारे जाते हैं...।
सफेद चूहे पाले जाते हैं,
और दूसरे दवा से मारे जाते हैं,
रंगभेद, वर्णभेद, नस्लभेद,
सब मिट भी जाएँ,
श्रमभेद नहीं मिटेगा, वो जानता है,
इसलिए अपने आपको हेय मानता है।
कूड़ा बीनकर,
मोलभाव के बाद,
एक सौ पैंतीस रुपये,
हाथ पर रखने के बाद,
शुक्रिया कहना भी जानता है।