कविता
औरत हरप्रीत कौर
खाविंद के लिए एक पहर का राँधते-राँधते खुशबू से भर जाता है पेट खाविंद जो दूसरे पहर तक पहले पहर का स्वाद भूल जाता है
हिंदी समय में हरप्रीत कौर की रचनाएँ