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कविता
जलियाँ वाला की बेदी
माखनलाल चतुर्वेदी
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अनुवाद
कविताएँ
अंधड़ और मानव
अपना आप हिसाब लगाया
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने
उठ अब, ऐ मेरे महाप्राण
उठ महान
उड़ने दे घनश्याम गगन में
खोने को पाने आए हो
गंगा की विदाई
गाली में गरिमा घोल-घोल
चलो छिया-छी हो अंतर में
जलियाँ वाला की बेदी
जवानी
जागना अपराध
जीवन, यह मौलिक महमानी
झंकार कर दो
टूटती जंजीर
तुम न हँसो
तुम मंद चलो
तुम्हारा चित्र
नई-नई कोपलें
प्यारे भारत देश
पुष्प की अभिलाषा
फुंकरण कर, रे समय के साँप
बेटी की बिदा
बसंत मनमाना
बोल तो किसके लिए मैं
बोल राजा, बोल मेरे
बोल राजा, स्वर अटूटे
भाई, छेड़ो नहीं, मुझे
मैं नहीं बोला, कि वे बोला किए
मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी
मधुर! बादल, और बादल, और बादल
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक
मन धक-धक की माला गूँथे
महलों पर कुटियों को वारो
ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें
ये वृक्षों में उगे परिंदे
यह अमर निशानी किसकी है?
यह किसका मन डोला
यह चरण ध्वनि धीमे-धीमे
यौवन का पागलपन
वे तुम्हारे बोल
वेणु लो, गूँजे धरा
वर्षा ने आज विदाई ली
वीणा का तार
सजल गान, सजल तान
सूझ का साथी
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा
सिपाही
हे प्रशांत, तूफान
हाँ, याद तुम्हारी आती थी
हिमालय पर उजाला
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