hindisamay head


अ+ अ-

कविता

डरो

घनश्याम कुमार देवांश


डरो
लेकिन ईश्वर से नहीं
एक हारे हुए मनुष्य से
सूर्य से नहीं
आकाश की नदी में पड़े मृत चंद्रमा से
भारी व वज्र कठोर शब्दों से नहीं
उनसे जो कोमल हैं और रात के तीसरे पहर
धीमी आवाज में गाए जाते हैं

डरो
धार और नोक से नहीं
एक नरम घास के मैदान की विशालता
और हरियाली से
साम्राज्य के विराट ललाट से नहीं
एक वृद्ध की नम निष्कंप आँखों से
 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में घनश्याम कुमार देवांश की रचनाएँ