आजकल
अकेले में पीनी पड़ती है चाय
टिफिन खोलना पड़ता है
बिना किसी आवाज के
सफर पर निकलना होता है
अकेले ही
प्रेमिका से बोलना पड़ता है
झूठ कि बहुत व्यस्त हूँ
बुखार को थकान
और बेकारी को मंदी कहना पड़ता है
रेजगारी सँभालते हुए
एक परिचित की निगाह को
बतानी पड़ती है
महानगर में उसकी अहमियत
जबकि
शादी और जन्मदिन की पार्टियाँ
वाहियात लगती हैं
और अच्छे खासे दोस्त
आवारागर्द
कितना मुश्किल है आजकल
विनम्र बने रहना
और
प्रकट करना उदारता
नौकरी न होने के दिनों में