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कविता

दलाई लामा

घनश्याम कुमार देवांश


स्वीकार और प्रतिकार के बीच तुम खड़े हुए हो अविराम
हाथ जोड़े, मुस्कुराते हुए
एक कठोर सत्ता की रीढ़ को दबाए हुए
अपने पैर के अँगूठे से
सत्ताएँ कसमसा रही हैं
लेकिन एक फनकार की तरह
तुमने साधा हुआ है उनको
पूरी दुनिया साँस रोके देख रही है
तुम्हारा अद्भुत संतुलन
अनवरत शांति व मुस्कान के साथ
तुम्हारा टिके रहना ही क्रांति हो गया है
 


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