तुम्हारे साथ एकांत में यह देह भी कपड़ा हो जाती है और मुझे लगता है कि मैं तुमसे दूर अपने कपड़ों में ही कैद हो गया हूँ
हिंदी समय में घनश्याम कुमार देवांश की रचनाएँ