देह के प्रहरी तुम्हारे होंठ
जिनके तले सो रही है
तुम्हारी गहरी नीली आत्मा वाली देह
मैं रात भर पड़ा रहता हूँ
तुम्हारे होंठ के द्वार पर
रात भर सुनता हूँ तुम्हारी देह का संगीत
मैं अपनी आत्मा के पैरों को
अपनी पसलियों में सिकोड़कर
ऊँघता रहता हूँ रातभर
मैं प्रतीक्षा करता हूँ
अनंत काल से
एक द्वार के खुलने का