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कविता

पूर्व प्रेमिकाएँ

घनश्याम कुमार देवांश


मेरे बाद
वे उन छातियों से भी
लगकर रोई होंगी
जो मेरी नहीं थीं
दूसरे चुंबन भी जगे होंगे
उनके होंठों पर
दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा
उनकी हथेलियों को
उनकी लोहे सी गरम नाक की
नोक ने
और गरदनों को भी दागा होगा
उन्होंने फिर धरी होगी
मछली की देह
किसी और के पानी में
वे किसी और के तपते
जीवन में भी पड़ी होंगी
पहली बारिश की बूँद सी
उनके सुंदर कुचों ने फिर दी होगी
उठते हिमालय को चुनौती
मुझे नहीं पता
लेकिन चाँद सुलगता रहा होगा
और
समुद्र ने अपने ही
अथाह जल में डूबकर
जरूर की होगी
आत्महत्या की कोशिश
जब उन्हें पता चला होगा
 


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हिंदी समय में घनश्याम कुमार देवांश की रचनाएँ