गंगा!
	देवनदी, मोक्षदायिनी, पतितपावनी, पापमोचिनी,
	हाँ, जाह्नवी।
	कानपुर की संपन्नता में,
	उदास और थकी दिखीं एक किनारे पर
	इलाहाबाद के माघ मेले की भीड़ में
	बहुत ढूँढ़ने पर मिलीं गुम हुई गंगा
	काशी के घाटों, मंदिरों की सीढ़ियों,
	शंख की आवाजों, वेद-मंत्रों
	और पंडों की उठा-पटक से परेशान,
	भगीरथ के पुरखों को तार,
	उनकी संतानों का बोझ ढोती,
	टूट चुकी है गंगा की कमर
	जीवित इतिहास कितने दिन और?
	इस सवाल से बच निकलना असंभव है।