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कविता

हमें नहीं मालूम था

प्रयाग शुक्ल


हमें नहीं मालूम था कि हम मिलेंगे एक दिन
पर जब मिल जाते हैं लगता है
तय था हमारा मिलना। यह कविता केवल मनुष्यों
के बारे में नहीं है। हम बैठे रहते हैं गुमसुम
कभी भीतर से अशांत। हम यानी मैं कुछ सीढ़ियाँ
कुछ पेड़, पहाड़, लड़कियाँ कभी आकाश धूप
छत आवाजें रात की दिन की।
जब हम सचमुच मिलते हैं
लगता है तय था हमारा मिलना।


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