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कविता

मुझसे बोलो

प्रयाग शुक्ल


बादल! मुझसे बोलो!

बंद रंध्र सब खोलो!
रोम रोम में बजो
हमारे हो लो!

मिट्टी की यह छुअन
तुम्हारी, उमड़े
गन्ध बने स्मृति की -
व्याकुल, बोलो!

जी भर जी को धो लो!


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