उसके चेहरे में बसी है एक पीड़ा, वह हँसती है तो वह और उभर आती है
कितना कम जानता हूँ उसे, नहीं, नहीं चेहरे को नहीं, उस पीड़ा को जो मेरी भी है
हिंदी समय में प्रयाग शुक्ल की रचनाएँ