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कविता

अब मैं नहीं याद करता तुम्हें

प्रयाग शुक्ल


बरस बीते
मिले थे हम दूर देश में
एक और देश में दूसरे,
आज
मैं नहीं याद करता तुम्हें
जाने कहाँ हो तुम
बरस बीते

पीता हूँ सिगरेट ढूँढ़ता हड़बड़ाकर
माचिस
जाकर खड़ा हो जाता
खिड़की के पास
सूर्यास्त

अब मैं नहीं याद करता तुम्हें


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