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कविता

चुप रहो या बोलो

प्रयाग शुक्ल


या तो चुप रहो
या बोलो
या तो बोलो
या चुप रहो

बोलो तो इस तरह
कि भीतर की चुप्पियों
तक ले जाए
बोलना.

रहो चुप तो इस तरह
कि भीतर की चुप्पियाँ
गहरी,
अथाह, बोलें


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