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कविता

कहा मेरी बेटी ने

प्रयाग शुक्ल


'ऐसे नहीं होते कवि' कहा मेरी
बेटी ने, ग्यारह साल की -
देखती हूँ - बहुत दिनों से नहीं
पूछा आपने, पौधों के बारे में।
छत पर नहीं गए
देखने तारे।
बारिश हुई, इतनी हरी घास उगी,
कैसी चमकती है धूप में, वहाँ -
देखा नहीं आपको देखते
उस घास को।
'ऐसे नहीं होते कवि'
कहा मेरी बेटी ने।


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