सोचता है सबसे पिछली कतार का आदमी सारी अगली कतारों के बारे में।
कहता नहीं, सोचता है - हम सब हो सकते थे एक ही कतार में - बस आदमी !
हिंदी समय में प्रयाग शुक्ल की रचनाएँ