तकिये के सिरे पर सिर -
उखड़ी हुई नींद में असंख्य गाँठों को खोलते अँधेरे में दिखती चीजों की शक्ल को पूरा करते - खिड़की से झाँकते तारों पत्तों को लाते करीब करवट बदलते चीजों की धड़कनों साँसों को सुनते -
सिरहाने रात के !
हिंदी समय में प्रयाग शुक्ल की रचनाएँ