बोलते हैं मोर रह-रह रात को।
रात को रह-रह।
बहुत गहरे। बहुत गहरे। अँधेरे में।
नींद के इन किन कपाटों बीच।
रह-रह बोलते हैं -
रात को।
हिंदी समय में प्रयाग शुक्ल की रचनाएँ