कोहरे को भेदकर लटका है चंद्रमा किसी तरह।
आ-जा रहे हैं लोग जैसे हो छायाएँ -
झूल रहा फटा हुआ पोस्टर - (इबारत को पढ़े कौन ?)
चुप गीली पत्तियाँ।
बसें सरकती हुईं। पटरी पर ठंड में मूँगफली बेच रहा लड़का।
ठिठुरन - ठिठुरन एक। कोहरे में - शहर एक और।
हिंदी समय में प्रयाग शुक्ल की रचनाएँ