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कविता

कोहरे में

प्रयाग शुक्ल


कोहरे को
भेदकर
लटका है चंद्रमा
किसी तरह।

आ-जा रहे हैं लोग
जैसे हो छायाएँ -

झूल रहा फटा
हुआ पोस्टर -
(इबारत को पढ़े कौन ?)

चुप गीली पत्तियाँ।

बसें सरकती हुईं।
पटरी पर ठंड में
मूँगफली
बेच रहा
लड़का।

ठिठुरन -
ठिठुरन एक।
कोहरे में -
शहर एक और।


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