hindisamay head


अ+ अ-

कविता

कहीं कभी

भुवनेश्वर


कहीं कभी सितारे अपने आपकी
आवाज पा लेते हैं और
आसपास उन्हें गुजरते छू लेते हैं...
कहीं कभी रात घुल जाती है
और मेरे जिगर के लाल-लाल
गहरे रंग को छू लेते हैं,
हालाँकि यह सब फालतू लगता है
यह भागदौड़ और यह सब
सब कुछ रूखा-सूखा है
लेकिन एक बच्चे की किलकारी की तरह
यह सब मधुर है
लेकिन कहीं कभी एक शांत स्मृति में
हम अपने सपनों का
इंतजार कर रहे हैं


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में भुवनेश्वर की रचनाएँ