अफ्रीका संसार के बड़े से बड़े महाद्वीपों में से एक है। हिंदुस्तान भी एक महाद्वीप के जैसे देश माना जाता है। परंतु अफ्रीका के भू-भाग में से केवल क्षेत्रफल की दृष्टि से चार या पाँच हिंदुस्तान बन सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका अफ्रीका के ठेठ दक्षिण विभाग में स्थित है। हिंदुस्तान के समान अफ्रीका भी एक प्रायद्वीप ही है। इसलिए दक्षिण अफ्रीका का बड़ा भाग समुद्र से घिरा हुआ है। अफ्रीका के बारे में सामान्यतः यह माना जाता है कि वहाँ ज्यादा से ज्यादा गर्मी पड़ती है और एक दृष्टि से यह बात सच है। भू-मध्य रेखा अफ्रीका के मध्य से होकर जाती है और इन रेखाओं के आसपास में पड़ने वाली गर्मी की कल्पना हिंदुस्तान के लोगों को नहीं आ सकती। ठेठ हिंदुस्तान के दक्षिण में जिस गर्मी का अनुभव हम लोग करते हैं, उससे हमें भू-मध्य रेखा के आसपास के प्रदेशों की गर्मी की थोड़ी कल्पना हो सकती है। परंतु दक्षिण अफ्रीका में ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि वह भू-भाग भूमध्य रेखा से बहुत दूर है। उसके बहुत बड़े भाग की आबहवा इतनी सुंदर और ऐसी समशीतोष्ण है कि वहाँ यूरोप की जातियाँ आराम से रह-बस सकती हैं, जबकि हिंदुस्तान में बसना उनके लिए लगभग असंभव है। फिर, दक्षिण अफ्रीका में तिब्बत अथवा कश्मीर जैसे बड़े-ऊँचे प्रदेश तो हैं, परंतु वे तिब्बत अथवा कश्मीर की तरह दस से चौदह हजार फुट ऊँचे नहीं हैं। इसलिए वहाँ की आबहवा सूखी और सहन हो सके इतनी ठंडी रहती है। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका के कुछ भाग क्षय से पीड़ित रोगियों के लिए अति उत्तम माने जाते हैं। ऐसे भागों में से एक भाग दक्षिण अफ्रीका की सुवर्णपुरी जोहानिसबर्ग है। वह आज से 50 वर्ष पहले बिलकुल वीरान और सूखे घासवाला प्रदेश था। परंतु जब वहाँ सोने के खदानों की खोज हुई तब मानों जादू के प्रताप से टपाटप घर बाँधे जाने लागे और आज तो वहाँ असंख्य विशाल सुशोभित प्रसाद खड़े हो गए हैं। वहाँ के धनी लोगों ने स्वयं पैसा खर्च करके दक्षिण अफ्रीका के उपजाऊ भागों से और यूरोप से भी, एक-एक पेड़ के पंद्रह-पंद्रह रुपये देकर, पेड़ मँगाए हैं और वहाँ लगाए हैं। पिछला इतिहास न जानने वाले यात्री को आज वहाँ जाने पर ऐसा ही लगेगा कि ये पेड़ उस शहर में जमानों से चले आ रहे हैं।
दक्षिण अफ्रीका के सारे विभागों का वर्णन मैं यहाँ नहीं देना चाहता। जिन विभागों का हमारे विषय के साथ संबंध है, उन्हीं का थोड़ा वर्णन मैं यहाँ देता हूँ। दक्षिण अफ्रीका में दो हुकूमतें हैं। (1) ब्रिटिश (2) पुर्तगाली। पुर्तगाली भाग डेलागोआ बे कहा जाता है। हिंदुस्तान से जाने वाले जहाजों के लिए वह दक्षिण अफ्रीका का पहला बंदरगाह कहा जाएगा। वहाँ से दक्षिण की ओर आगे बढ़ें तो पहला ब्रिटिश उपनिवेश नेटाल आता है। उसका बंदरगाह पोर्ट नेटाल कहलाता है। परंतु हम उसे डरबन के नाम से जानते हैं और दक्षिण अफ्रीका में भी सामान्यतः वह इसी नाम से जाना जाता है। वह नेटाल का सबसे बड़ा शहर है। पीटर-मेरित्सबर्ग नेटाल की राजधानी है। वह डरबन से अंदर के भाग में लगभग 60 मील के अंतर पर समुद्र की सतह से लगभग दो हजार फुट की उँचाई पर बसी हुई है। डरबन की आबहवा कुछ हद तक मुंबई की आबहवा से मिलती-जुलती मानी जाती है। मुंबई की अपेक्षा वहाँ की हवा में ठंडक जरूर कुछ अधिक है। नेटाल को छोड़कर आगे जाने पर ट्रांसवाल आता है। ट्रांसवाल की धरती आज दुनिया को अधिक से अधिक सोना देती है। कुछ ही वर्ष पूर्व वहाँ हीरे की खदानें भी मिली हैं, जिनमें से एक में संसार का सबसे बड़ा हीरा निकला है। संसार के इस सबसे बड़े हीरे का नाम खदान के मालिक क्लीनन के नाम पर रखा गया है। यह क्लीनन हीरा कहा जाता है। इस हीरे का वजन 3000 कैरेट अर्थात् 1-1/3 एवोर्डुपोइज पौंड है; जब कि कोहिनूर हीरे का आज का वजन लगभग 100 कैरेट है और रूस के ताज के हीरे 'ऑर्लफ' हीरे का आज का वजन लगभग 200 कैरेट है।
यद्यपि जोहानिसबर्ग सुवर्णपुरी है और हीरों की खदानें भी उसके निकट में ही हैं, फिर भी वह ट्रांसवाल की राजधानी नहीं है। ट्रांसवाल की राजधानी है प्रिटोरिया। वह जोहानिसबर्ग से 36 मील दूर है और उसमें मुख्यतः शासक और राजनीतिक लोग तथा उनसे संबंधित लोग रहते हैं। इस कारण से प्रिटोरिया का वातावरण तुलना में शांत कहा जाएगा। जिस प्रकार हिंदुस्तान के किसी छोटे से गाँव से या कहिए कि छोटे शहर से मुंबई पहुँचते ही वहाँ की दौड़-धूप, धाँधली और अशांति से आदमी घबरा उठता है, उसी प्रकार प्रिटोरिया से जाने वाला आदमी जोहानिसबर्ग के दृश्य से घबरा उठता है। जोहानिसबर्ग के नागरिक चलते नहीं परंतु दौड़ते-से मालूम होते हैं, ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसी के पास किसी की ओर देखने जितना भी समय नहीं होता; सब कोई इसी विचार में डूबे हुए मालूम होते हैं कि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा धन कैसे कमाया जा सकता है! ट्रांसवाल को छोड़कर यदि अधिक भीतरी प्रदेश में ही पश्चिम की ओर हम जाएँ, तो ऑरेंज फ्री स्टेट अथवा ऑरेंजिया का उपनिवेश आता है। उसकी राजधानी का नाम ब्ल्यूफोंटीन है। वह अत्यंत छोटा और शांत शहर है। ऑरेंजिया में ट्रांसवाल की तरह सोने और हीरे की खदानें हैं। उस उपनिवेश में थोड़े घंटों की रेल यात्रा करने के बाद ही हम केप कालोनी की सीमा पर पहुँच जाते हैं। केप कालोनी दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा उपनिवेश है। उसकी राजधानी केप टाउन के नाम से पुकारी जाती है, जो केप कालोनी का सबसे बड़ा बंदरगाह है। वह केप ऑफ गुड होप (शुभ आशा का अंतरीप) नामक अंतरीप पर स्थित है। उसका यह नाम पुर्तगाल के राजा जान ने रखा था, क्योंकि वास्को डी गामा द्वारा उसकी खोज होने पर राजा के मन में यह आशा बँधी थी कि अब उसकी प्रजा हिंदुस्तान पहुँचने का एक नया और अधिक सरल मार्ग प्राप्त कर सकेगी। हिंदुस्तान उस युग के समुद्री अभियानों का चरम लक्ष्य माना जाता था।
ये चार मुख्य ब्रिटिश उपनिवेश हैं। इनके सिवा ब्रिटिश हुकूमत के संरक्षण में कुछ ऐसे प्रदेश हैं, जहाँ दक्षिण अफ्रीका के - यूरोपियनों के आगमन से पहले के - मूल निवासी रहते हैं।
दक्षिण अफ्रीका का मुख्य उद्योग खेती का ही माना जाएगा। खेती के लिए वह देश उत्तम है। उसके कुछ भाग तो अत्यंत उपजाऊ और सुंदर हैं। अनाजों में अधिक से अधिक मात्रा में और आसानी से पकने वाला अनाज मकई है; और मकई दक्षिण अफ्रीका के हबशी लोगों का मुख्य आहार है। कुछ भागों में गेहूँ भी पैदा होता है। फलों के लिए तो दक्षिण अफ्रीका बड़ा विख्यात है। नेटाल में अनेक जाति के और बहुत सुंदर तथा सरस केले, पपीते और अनन्नास पकाते हैं, और वह भी इतनी बहुतायत से कि गरीब से भी गरीब आदमी को भी वे मिल सकते हैं। नेटाल में और अन्य उपनिवेश में नारंगी, संतरे, पीच (आड़ू) और एप्रिकोट (जरदालू) इतनी बड़ी मात्रा में पैदा होते हैं कि हजारों लोग मामूली सी मेहनत करें तो भी गाँव में वे बगैर पैसे के ये फल पा सकते हैं। केप कालोनी तो अंगूरों की और 'प्लम' (एक जाति का बड़ा बेर) की ही भूमिका है। वहाँ के जैसे अंगूर दूसरे उपनिवेशों में शायद ही होते हों। मौसम में उनकी कीमत इतनी कम होती है कि गरीब आदमी भी भर पेट अंगूर खा सकता है और यह तो कभी हो ही नहीं सकता कि जहाँ-जहाँ हिंदुस्तानियों की आबादी हो वहाँ आम के पेड़ न हों। हिंदुस्तानियों ने दक्षिण अफ्रीका में आम के पेड़ लगाए। इसका नतीजा यह है कि आज वहाँ काफी मात्रा में आम भी खाने को मिल सकते हैं। उनकी कुछ जातियाँ जरूर मुंबई की हाफुस-पायरी जैसे जातियों से होड़ लगा सकती हैं। साग-भाजी भी उस उपजाऊ भूमि में खूब पैदा होती है; और ऐसा कहा जा सकता है कि शौकीन हिंदुस्तानियों ने वहाँ लगभग सभी तरह की साग-भाजी पैदा की है।
पशु भी वहाँ काफी संख्या में हैं, ऐसा कहा जा सकता है। वहाँ के गाय-बैल हिंदुस्तान के गाय-बैलों से ज्यादा कद्दावर और ज्यादा ताकतवर होते हैं। गोरक्षा का दावा करने वाले हिंदुस्तान में असंख्य गायों और बैलों को हिंदुस्तान के लोगों की तरह ही दुबले-पतले और कमजोर देखकर मैं लज्जित हुआ हूँ और मेरा हृदय अनेक बार रोया है। दक्षिण अफ्रीका में मैंने कभी दुर्बल गायें या बैल देखे हों ऐसा मुझे याद नहीं है, यद्यपि मैं सारे भागों में लगभग अपनी आँखें खुली रखकर घूमा हूँ।
कुदरत ने दूसरी कई देनें तो इस भूमि को दी ही हैं, परंतु सृष्टि सौंदर्य से इस भूमि को सुशोभित करने में भी उसने कोई कमी नहीं रखी है। डरबन का दृश्य बहुत सुंदर माना जाता है। परंतु केप कालोनी उससे कहीं अधिक सुंदर है। केप टाउन 'टेबल माउंटेन' नामक न तो अधिक नीचे और न अधिक ऊँचे पहाड़ी की तलेटी में बसा हुआ है। दक्षिण अफ्रीका को पूजने वाली एक विदुषी महिला उस पहाड़ के विषय में लिखी अपनी कविता में कहती हैं कि जिस अलौकिकता का अनुभव मैंने टेबल माउंटेन में किया है वैसी अन्य किसी पहाड़ में मैंने अनुभव नहीं की। इस कथन में अतिशयोक्ति हो सकती है। मैं मानता हूँ कि इसमें अतिशयोक्ति है। परंतु इस विदुषी महिला की एक बात मेरे गले उतर गई है। वह कहती हैं कि टेबल माउंटेन केप टाउन के निवासियों के लिए मित्र का काम करता है। बहुत ऊँचा न होने के कारण वह पहाड़ भयंकर नहीं लगता। लोगों को दूर से ही उनका पूजन नहीं करना पड़ता बल्कि वे पहाड़ पर ही माकन बनवाकर वहाँ रहते हैं; और ठीक समुद्र-तट पर होने के कारण समुद्र अपने स्वच्छ जल से उसका पाद-पूजन करता है तथा उसका चरणामृत पीता है। बालक और बूढ़े, स्त्रियाँ और पुरुष सब निर्भय हो कर लगभग सारे पहाड़ में घूम सकते हैं और हजारों नागरिकों की आवाजों से सारा का सारा पहाड़ प्रतिदिन गूँज सठता है। विशाल-वृक्ष और सुगंधित तथा रंग-बिरंगे फूल समूचे पहाड़ को इतना अधिक सँवार और सजा देते हैं कि मनुष्य को उसकी सुषमा और शोभा देखने और उसमें घूमने से कभी तृप्ति ही नहीं होती।
दक्षिण अफ्रीका में इतनी बड़ी नदियाँ नहीं हैं जिनकी तुलना हमारी गंगा-यमुना के साथ की जा सके। जो थोड़ी नदियाँ वहाँ हैं, वे हमारे यहाँ की नदियों की तुलना में छोटी हैं। उस देश में अनेक स्थानों पर नदियों का पानी पहुँचता ही नहीं। ऊँचे प्रदेशों में नदियों से नहरें भी कैसे ले जाई जाएँ? और जहाँ समुद्र जैसी विशाल नदियाँ न हों वहाँ नहरें हो भी कैसे सकती हैं? दक्षिण अफ्रीका में जहाँ-जहाँ पानी की कुदरती तंगी है वहाँ पाताल-कुएँ खोदे जाते हैं और उनमें से खेतों की सिंचाई की जा सके इतना पानी पवन-चक्कियों और भाप के इंजनों द्वारा खींचा जाता है। खेती को वहाँ की सरकार की ओर से काफी मदद मिलती है। किसानों को सलाह देने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए सरकार अपने कृषिशास्त्रियों को उनके पास भेजती है। अनेक स्थानों पर सरकार किसानों के लाभ के लिए खेती के विविध प्रयोग करती है। वह नमूने के फार्म चलाती है, किसानों को अच्छे पशुओं और अच्छे बीज की सुविधा देती है, बहुत ही थोड़ी कीमत में पाताल-कुएँ खुदवा देती है और किस्तों में उसका मूल्य चुकाने की सुविधा किसानों को देती हैं। इसी प्रकार सरकार खेतों के आसपास लोहे के कंटीले तारों की बाड़ भी करा देती है।
दक्षिण अफ्रीका भू-मध्य रेखा के दक्षिण में है और हिंदुस्तान उस रेखा के उत्तर में है, इसलिए वहाँ का समूचा वातावरण - जलवायु हिंदुस्तानियों को उलटा महसूस होता है। वहाँ की ऋतुएँ भी हिंदुस्तान से उलटी होती हैं। उदाहरण के तौर पर हमारे यहाँ जब गर्मी का मौसम आता है तब वहाँ सर्दी का मौसम रहता है। बरसात का कोई निश्चित नियम वहाँ है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। किसी भी समय वर्षा वहाँ गिर सकती है। सामान्यतः 20 इंच से अधिक बरसात वहाँ नहीं होती है।