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कविता

उन मुस्कानों की बलि जाऊँ

वृंदावनलाल वर्मा


उन मुस्कानों की बलि जाऊँ
सती की चिता की दीपशिखा पर जो लहराती रहती हैं
निर्बल के कण-कण में भी जो ज्योति जगाती रहती हैं
बलिदानों की ध्वजा निरंतर जो फहराती रहती हैं
उन बलिदानों से बल पाऊँ उन वरदानों से भर पाऊँ
उन मुस्कानों की बलि जाऊँ।

 


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