उन मुस्कानों की बलि जाऊँ सती की चिता की दीपशिखा पर जो लहराती रहती हैं निर्बल के कण-कण में भी जो ज्योति जगाती रहती हैं बलिदानों की ध्वजा निरंतर जो फहराती रहती हैं उन बलिदानों से बल पाऊँ उन वरदानों से भर पाऊँ उन मुस्कानों की बलि जाऊँ।
हिंदी समय में वृंदावनलाल वर्मा की रचनाएँ