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कहानी

पुराना पैकेज

नीना पॉल


'ना जाने उसे किसका इंतजार था।

वह सजती, सँवरती। शीशे के आगे घंटों खड़ी हो कर स्वयं को निहारती रहती। जरा सा आँचल ढुलक जाता तो यूँ शर्मा जाती मानों किसी ने जान-बूझ कर आँचल सरका दिया हो। अचानक भाग कर जा खिड़की के बाहर देखने लगती कि आने वाला कहीं रास्ता ना भूल जाए।

रास्ता तो वह उस रोज भूली थी। कितना डर गई थी वह। बात ही कुछ ऐसी थी। इतना भी क्या अपने खयालों में खोना कि रास्ते का ही पता ना रहे। बस एक गलत मोड़ और मीलों लंबी सड़क। यही तो कमाल है इंग्लैंड की साफ सुथरी लंबी सड़कों का।

सर्दी का सौसम। लंबा हाइवे। घनी डरावनी धुंध। साईनबोर्ड भी तो कोहरे के कारण ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे जो जान सके कि आखिर वह कौन से रास्ते पर है। धीरज बँधाने को कुछ था तो आगे जाती हुइ कारों की लाल टिमटिमाती बत्तियाँ। पर्स में हाथ डाल कर टटोलने लगी तो मोबाइल भी नदारद। शायद जल्दी में वहीं रह गया होगा। तेरे काम भी तो जल्दी के होते हैं आरती। वह स्वयं को कोसने लगी।

डर से स्टेरिंग व्हील पर हाथ काँप रहे थे। अगर पैट्रोल खत्म हो गया तो... कार अचानक खराब हो गई तो... ऐसे खराब मौसम में किससे सहायता माँगूँगी। आँखों में आँसू भरने के कारण सामने और भी धुँधला दिखाई देने लगा। अंदर से एक आवाज आई, शांत हो जा आरती।

शांत तो मैं उस दिन भी थी जब विकास हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चले गए थे। परदेस, जहाँ अपना कहने के लिए केवल चंद दोस्त हों। हिम्मत तो तब भी नहीं हारी थी। दो दो नौकरियाँ करके बच्चों को उनके पैरों पर खड़ा करके इस काबिल बनाया कि आज वह सिर ऊँचा करके समाज में जी रहे हैं। विकास तो ऐसे गए कि एक बार उन्होंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा।

लेकिन मुझे तो अगली मोड़ पर ही मुड़ना है। आरती की निगाह एकदम सामने धुँधले से साईनबोर्ड पर गई तो उसने राहत की साँस ली। सफेद स्ट्रीट लाइट बल्ब उस कोहरे में पीले हो कर जगमगा रहे थे। आरती की नजर पैट्रोल की सुई पर गई तो अभी आधा टैंक बाकी था।

विकास की यही तो एक अच्छी आदत थी कि वह पैट्रोल की टंकी को हमेशा ऊपर तक भरा रखते थे। कभी ना चाहते हुए भी हम दूसरों की आदतें अपना ही लेते हैं फिर चाहे वो अच्छी हों या...। मेहनत करना भी तो विकास ने ही सिखाया था।

काम पर से आते ही जब वह आरती को किचन में यूँ इधर से उधर हाथ चलाते देखते तो प्यार से पास आ जाते...।

लाओ सब्जी मैं काट देता हूँ आरती तुम थक गई होगी।

लीजिए, सारा दिन काम करके तो आप आए हैं। बैठिए... मैं चाय लेकर आती हूँ। रोज शाम की चाय वह दोनों एक साथ ही पीते थे बातें करते हुए।

आरती तुम भी क्या सोचती होगी कि किस फकीर से पाला पड़ा है। अरे कहाँ भारत में नौकर चाकरों में पली मेरी आरती, और यहाँ मेरे बच्चों के लिए कितना काम करती है विकास उदास होते हुए बोले।

मेरे बच्चे नहीं हमारे बच्चे आरती ने हँसते हुए कहा।

हाँ जानता हूँ आरती विकास ने एक लंबी साँस छोड़ी।

साँस लेने में विकास को उस दिन कितनी तकलीफ हुइ होगी जब अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। भगवान का लाख शुक्र है कि मैं घर पर थी। कैसे एक एक साँस के लिए वह तड़प रहे थे। एंबुलैंस ने तो आने में जरा भी देर नहीं की लेकिन विकास को जाने में शायद बहुत जल्दी थी। उनका हाथ मेरे हाथ में था जिसे मैं कस के पकड़ ही ना पाई और वह चले गए।

उनके होंठ बिना कुछ बोले खामोश हो गए। जाने वाला कितना निष्ठुर हो जाता है। यह भी नहीं सोचता कि जो पीछे छूट रहा है वह किसके सहारे जिंदा रहेगा। कई बार जिंदा रहना भी एक मजबूरी हो जाती है अपने लिए ना सही दूसरों के लिए ही।

गर्मी सर्दी, भूख प्यास की परवाह किए बिना जिन बच्चों के सुख दुख का खयाल रखा जाता है वही बड़े होने पर अपने बुजुर्गों को बोझ समझने लगें तो कितनी तकलीफ होती है।

माँ ना जाने किस धातु की बनी होती है जिसे बच्चों के कड़ुवे बोल से भी तकलीफ नहीं होती। उनकी एक मुस्कान दिन भर की थकावट दूर कर देती है। बच्चे का एक आलिंगन उसका सारा दर्द मिटा देता है। कभी कभी किसी के छोटे से स्पर्श के लिए भी तरस जाते हैं। जी चाहता है कोई कस के बाहों में भर ले और प्यार से बालों में उँगलियाँ उलझा कर सुला दे।

इस समय तो आरती कोहरे और बत्तियों का आलिंगन देख रही थी। खंभे के ऊपर चमकते पीले बल्ब ऐसे लग रहे थे मानों एक कतार में दिए जल रहे हों। हाँ दियों से याद आया दीवाली आने वाली है। हूँ, वो भी एक दीवाली थी... आरती कहीं खो गई...।

आरती तुम्हारी एक यही बुरी आदत है कि बात करते हुए जाने किन खयालों में खो जाती हो। तुमने बताया नहीं कि दीवाली में क्या शोपिंग करनी है विकास ने आरती के चेहरे से बाल हटाते हुए पूछा।

आपको मालूम तो है, हर साल आप ही तो शापिंग करते हैं।

हाँ करता तो हूँ तुम साथ जो नहीं चलती। तुमने आज तक मुझसे कुछ नहीं माँगा आरती। चाहता हूँ कि इस दीवाली पर कोई तुम्हारी पसंद का तोहफा दूँ तुम्हें। बताओ क्या चाहिए।

आरती थोड़ी देर विकास को देखती रही फिर हँस कर किचन में जाते हुए बोली वो तोहफा ही क्या जो माँग कर लिया जाए।

लगता है आरती मैं तुम्हें कभी खुश नहीं रख पाया।

आरती की आँखों में आँसू आ गए। सोचने लगी जब विकास खुश होते हैं तो कितनी अच्छी बातें करते हैं और मूड खराब होते ही तानों के साथ तिनका तिनका उड़ा देते हैं

माँ ने ही कहाँ मेरे अरमानों का खयाल किया था जो विकास करते। एक लड़की जब जवानी की दहलीज पर पाँव रखती है तो शादी की बातें ही उसे गुदगुदाने लगती हैं। वह ना जाने भविष्य के कितने सपने बुनने लगती है।जिसमें वो और उसका राजकुमार...

आरती, बेटा तू विकास से शादी कर लेगी।

माँ... विकास मेरे जीजू हैं। मेरी बहन के पति। आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं।

तेरी बहन हमें ही नहीं अपने पीछे दो छोटे बच्चों को छोड़ कर इस दुनिया से दूर चली गई है और फिर...

माँ, आरती बीच में ही माँ को रोकते हुए बोली जीजू इंगलैंड में रहते हैं। उन्हें अच्छी से अच्छी लड़की मिल सकती है फिर मैं ही क्यों।

हाँ बेटा तेरे जीजू को तो पत्नी मिल सकती है परंतु बच्चों को माँ नहीं मिलेगी। माँ का प्यार केवल तुम ही उन्हें दे सकती हो क्योंकि वह तुम्हारी बहन के बच्चे हैं माँ प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली।

माँ मैं अपनी बहन के पति को उस नजर से कैसे देखूँगी। फिर आपको मेरी और जीजू की आयु का अंतर नहीं मालूम।

बेटा पति चाहे आयु में पत्नी से कितना भी बड़ा हो पत्नी की हर जरूरत पूरी करने की क्षमता रखता है। बच्चों की खातिर ही सही हाँ कर दे।

मासी कहता हुआ तीन साल का विकी भागता हुआ आ कर आरती के साथ लिपट गया। आरती का जी चाहा कि उन नन्हीं सी बाँहों को झटक दे। निकल जाए उस घेरे से। वह जितना उन्हें दूर करने का प्रयत्न करती वो बाँहें उसे और कस लेतीं। ठीक उसी प्रकार जैसे हवा में आजाद उड़ते हुए भँवरे को चिड़िया अपनी चोंच में पकड़ लेती है। वह छूटने के लिए पर फड़फड़ाता है... डंक मारने की कोशिश करता है... और अंत में थक हार कर दम तोड़ देता है।

आरती तड़पी नहीं परंतु रात भर सिसकती जरूर रही। दूसरी सुबह एक नई आरती का जन्म हुआ। उसके अरमानों का कत्ल करके किस्मत का फैसला सुना, उम्र भर की कैद में बंद कर दिया गया। एक अठारह साल की लड़की दो बच्चों की माँ बन गई। उसने अपनी हर खुशी बहन के बच्चों पर निछावर कर दी।

मॉम मेरी स्कूल की टाई कहाँ है।

वहीं होगी जहाँ शाम को उतार कर फेंकी थी। आरती ने उसी के कपड़ों के नीचे से टाई उठाते हुए कहा थोड़े बहुत तो हाथ पैर चलाया करो अनिल।

मॉम आपने ही तो कहा है कि हमारा काम केवल पढ़ना है बाकी सब आप पर छोड़ दें अनिल शोखी से बोला तो आरती मुस्कुराहट ना छुपा सकी।

हाँ आरती ने ही बच्चों से कहा है कि उसे स्कूल से कभी कोई शिकायत नहीं चाहिए।

शिकायत शब्द शायद आरती के शब्दकोश में ही नहीं है। विकास के कड़ुवे बोलों पर भी उसने कभी जुबाँ नहीं खोली थी।

शादी के पश्चात आरती ने जब अपनी संतान ना पैदा करने की बात माँ से बताई तो वह आँखों में आँसू भर कर बेटी को समझाने लगीं...

बेटा एक औरत तभी पूरी समझी जाती है जब वह अपनी कोख से बच्चे को जन्म देती है। असली ममता का मतलब वह तभी समझ पाती है। यदि तुम्हारी कोई संतान ना हुई तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी।

आरती एक नन्हें मुन्हे बेटे को जन्म देकर बहुत खुश थी। उसने सोचा अब मैं अपने बड़े बच्चों को भी भरपूर ममता दे पाऊँगी।

छोटे बेटे सोनू को प्यार करता देख विकास से बोले बिना रहा ना गया। आरती... अब तुम्हारा अपना बेटा आ गया है तो बहन के बच्चों को ना भूल जाना... सोनू को प्यार करता हाथ वहीं रुक गया। बड़ी मुश्किल से आरती ने आँखों में उबलते हुए आँसुओं को छुपाया। अब तो वह बेटे को प्यार करते हुए भी डरती कि कहीं विकास गुस्से में बच्चों के सामने ही ना कुछ बोल दें।

विकास का स्वभाव दिनों दिन चिड़चिड़ा होता जा रहा था। काम पर भी अकसर उनकी झड़प किसी ना किसी से हो जाती।

विकास क्या बात है यार तेरी तबियत तो ठीक है ना उसके दोस्त पंकज ने विकास को सुस्त देख कर पूछा।

क्या बताऊँ यार आज कल बहुत जल्दी थक जाता हूँ।

अरे भाई जब अपने से आधी उम्र की लड़की से शादी करो तो यही हालत होती है पीछे से किसी की आवाज आई।

कोई और समय होता तो विकास इस बात का अच्छा खासा जवाब देते मगर आज वह कुछ ठीक महसूस नहीं कर रहे थे। काम से भी जल्दी घर आ गए।

बिस्तर पर करवटें लेते हुए विकास की नजर घड़ी पर उठ गई

आरती विकी नहीं आया अभी तक साढ़े दस बज गए हैं

आ जाएगा। वह दोस्तों के साथ अपना जन्मदिन मना रहा है। आप का बेटा अब बड़ा हो गया है। उसका फिक्र करना छोड़िए आरती कपड़े सँभालते हुए बोली।

हाँ, अब मैं अपने बच्चों की फिक्र नहीं करूँगा तो कौन करेगा। तुझे क्या तेरा तो घर के अंदर सुरक्षित बैठा है ना

विकास... आज पहली बार आरती के मुँह से पति का नाम निकला था। आरती को आश्चर्य हो रहा था कि इतनी बड़ी बात सुन कर भी उसकी साँसें कैसे चल रही हैं। यदि ऐसे ही हर बात पे साँसें रुकने लगें तो इनसान प्रतिदिन ना जाने कितनी मौतें मरे।

साँसें रुकीं जरूर लेकिन आरती की नहीं विकास की। दिल का दौरा पड़ने से वह सब को छोड़ कर चले गए। आरती बिन दीपक के आरती हो कर रह गई। बिना उफ किए दिन रात मेहनत करके उसने पूरे परिवार को सँभाला।

औरत देखने में कमजोर जरूर होती है मगर हिम्मत में वह आदमी से कहीं आगे होती है। आरती ने हर दर्द को सीने में दबा कर होंठ सी लिए।

उफ तो उस दिन भी उसके होंठों से नहीं निकली थी जब विकी ने ऐलान किया था मॉम इससे मिलो मेरी दोस्त रूबी... विकी एक अँग्रेज लड़की को घर ले कर आया। रूबी और मैं एक ही दफ्तर में काम करते हैं। मॉम, हम दोनों ने शादी करने का फैसला किया है और शादी भी चर्च में करेंगे जो खर्चा कम आए। ठीक किया ना मॉम।

आरती को गुमसुम देख कर विकी ने फिर पूछा, 'माँ ठीक किया ना।'

हाँ बेटा, जब तुम दोनों ने मिल कर फैसला किया है तो ठीक ही होगा।

देखा तुम यूँ ही डर रही थी, विकी रूबी की ओर देख कर बोला। मैं कहता ना था कि मेरी माँ हमारी शादी से बहुत खुश होगी।

बस बड़े भाई ने जो चलन चलाया तो छोटे दोनों भी उसी के पद चिह्नों पर चले। जब वह अपनी शादी पर ही जुबान ना खोल सकी तो बच्चों को क्या रोकती।

अपने अरमानों के साथ वह एक बार फिर बह गई। भरा पूरा परिवार होते हुए भी वह बिल्कुल अकेली थी। बच्चों ने शादी करके अपना अलग घर बसा लिया जहाँ माँ के लिए कोई स्थान नहीं था। त्यौहार भी आते तो वह अकेली मनाती।

आरती इस बार दीवाली पर क्या कर रही हो। भई तुम्हारी तो तीनों बहुएँ अँग्रेज हैं दीवाली कहाँ मनाती होंगी आरती की सहेली मीनू ने सहानुभूति जताते हुए पूछा।

आरती के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई। नहीं मीनू वह चहकती आवाज में बोली, 'अँग्रेज हैं तो क्या हुआ। इस बार सब बच्चे घर आएँगे। मीनू जी चाहता है कि इस दीवाली पर कुछ खास करूँ जो बच्चे भी जिंदगी भर याद रखें।

भई तब तो हमें दावत देना मत भूलना।

नहीं नहीं इस बार तो पूरा शहर मेरे साथ दीवाली मनाएगा आरती मुस्कुरा कर बोली

उफ, कई बार तुम्हारी बातें मेरी समझ के बाहर होती हैं आरती मीनू ने ताना मारा।

जब मैं ही नहीं समझ पाती तो तुम्हें क्या समझाऊँ उस ने हँसते हुए जवाब दिया

आरती घर आ कर सोचने लगी। कुछ ही रोज तो बचे हैं। सारे काम अकेले कैसे कर पाऊँगी। वह दीवार पर टँगी पति की तस्वीर की तरफ देख कर प्यार से बोली, 'क्या विकास, आप तो बस तस्वीर में टँगे मुस्कुरा रहे हैं। ये भी नहीं कि आ कर थोड़ी सहायता कर दें। आप दीवाली पर मुझे तोहफा देना चाहते थे ना। इस बार मैं अपने सारे अरमान पूरे कर लूँगी। ठीक है ना।'

हाँ एक बात की आपसे शिकायत है। कह दूँ। अजी छोड़िए। जब कहना था तब नहीं कहा तो आज भी क्या कहूँ। इस दीवाली पर मैं अपनी सेज अपने हाथों सजाऊँगी। सेज ही नहीं पूरे घर को दुल्हन बनाऊँगी। आप मेरा साथ देंगे ना।

आरती बेसब्री से दीवाली की प्रतीक्षा करने लगी। उसने अपने हाथों सारा घर पेंट किया। घर में नई बत्तियाँ लगाईं। नए पर्दे, नया फर्नीचर। हर पुरानी चीज को बाहर फेंक दिया।

आरती अकसर विकास की तस्वीर से बातें करती। विकास आज मेरी शादी है। आप आएँगे ना मेरी शादी पर। आपने तो पहली रात मुझे पुराने बिस्तर पर सुलाया था। उसमें आपका कोई कसूर नहीं था। पुराने पैकेज को कितना भी नए कागज में लपेट लो चीज तो पुरानी ही निकलेगी। वैसे जिस एक पल पर हर नई नवेली दुल्हन का अधिकार होता है आपने वह भी छीन लिया उस समय मेरी तुलना किसी और से करके।

आरती ने गालों पर गर्म पानी सरकता महसूस किया तो बड़ी बेरहमी से उसे अपने गालों से झटक दिया।

अरे सूरज ढलने वाला है मुझे जरा जल्दी हाथ चलाने चाहिए। मेहमान आ जाएँगे। उसने अलमारी से लाल सितारों जड़ी साड़ी निकाली। कंगना, झूमर, टीका, पायल सबसे खुद को सजाने लगी।

जब आरती ने स्वयं को शीशे में निहारा तो अपना खिला हुआ रूप देख कर शर्मा के सिमट गई। धीरे से आगे बढ़ कर उसने आईने का चुंबन ले लिया।

ड्राइंगरूम में चारों ओर बत्तियाँ और दिए जगमगा रहे थे।

दुल्हन सी सजी आरती। साड़ी के पल्ले से आधा माथा ढका हुआ। शर्माती हुई धीरे से पग उठाती वह ऐसे आगे बढ़ रही थी जैसे प्रियतम का आलिंगन करने जा रही हो। दियों की तेज रोशनी से आरती की पलकें गीली हो गईं। आँखें भीगने से दिए की एक लौ चार दिखाई देने लगीं। हर दिए से निकलती हुइ चार नन्हीं नन्हीं बाँहें उसे अपनी ओर आकर्षित करने लगीं। आरती स्वयं को रोक ना पाई। उसके कदम आगे बढ़ने लगे। उस फैलते हुए बाँहों के घेरे ने आरती को जकड़ लिया। आरती के गाल हया से तमतमा रहे थे। वह दिए की लौ का आलिंगन स्वीकार कर शरमा के आगे की ओर झुकने लगी... और झुकती ही चली गई...


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