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जोतीराव गोविंदराव फुले

जोतीराव गोविंदराव फुले

परिचय

जन्म : 11 अप्रैल 1827

भाषा : मराठी, अंग्रेजी

विधाएँ : चिंतन, कविता, नाटक, निबंध

मुख्य कृतियाँ

तृतीय रत्न, पँवाड़ा : छत्रपति शिवाजी भोसले का, पँवाड़ा : शिक्षा विभाग के ब्राह्मण अध्यापक का, ब्राह्मणों की चालाकी, गुलामगीरी, किसान का कोड़ा, ग्रामजोशी के संबंध में, सत्य-शोधक समाज के लिए मंगलगाथा और पूजाविधि, सार्वजनिक सत्यधर्म

निधन

28 नवंबर 1890

विशेष

महात्मा जोतिबा फुले ऐसे महान विचारक, समाज सेवी तथा क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे जिन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना की जड़ता को ध्वस्त करने का काम किया। महिलाओं, दलितों एवं शूद्रों की अपमानजनक जीवन स्थिति में परिवर्तन लाने के लिए वे आजीवन संघर्षरत रहे। सन 1848 में उन्‍होंने पुणे में अछूतों के लिए पहला स्‍कूल खोला। यह भारत के ज्ञात इतिहास में अपनी तरह का पहला स्‍कूल था। इसी तरह सन 1857 में उन्होंने लड़कियों के लिए स्‍कूल खोला जो भारत में लड़कियों का पहला स्कूल हुआ। उस स्कूल में पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक न मिलने पर जोतिबा फुले की पत्नी सावित्री आगे आईं। अपने इन क्रांतिकारी कार्यों की वजह से फुले और उनके सहयोगियों को तरह-तरह के कष्ट उठाने पड़े। उन्हें बार-बार घर बदलना पड़ा। फुले की हत्या करने की भी कोशिश की गई। पर वे अपनी राह पर डटे रहे। अपने इसी महान उद्देश्य को संस्थागत रूप देने के लिए जोतिबा फुले ने सन 1873 में महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। उनकी एक महत्वपूर्ण स्थापना यह भी थी कि महार, कुनबी, माली आदि शूद्र कही जानेवाली जातियाँ कभी क्षत्रिय थीं, जो जातिवादी षड्यंत्र का शिकार हो कर दलित कहलाईं।

 

हिंदी समय में जोतीराव गोविंदराव फुले की रचनाएँ



    विमर्श
  • गुलामगीरी
  • सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक

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