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आओ प्रिये
आसमान उदास है
कवि होता है
गेहूँ संग घुन
चाय महज शब्द नहीं है
टिका है बादल उसके आधार पर
तुम कहो तो देख लूँ
देख रहे हो गाँव अभी
दिन बीतते हैं
धरती को दुख है
प्रिये ! तुम कहो तो
भटका हुआ विश्वास हूँ
माँ ऐसा मत सोचना
ये शिला पर हार का इतिहास रचते हैं
यह गाँव है बंधु!
वे जो भी चाहते हैं
वर्तमान का गया बीता
सोचता हूँ तो मौन रह जाता हूँ
हर त्यौहार ऐसे ही जाता है अब
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