हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 

प्रेम की भूतकथा

विभूति नारायण राय

 

 भाग-3

उपन्यास का अनुक्रम भाग-1 भाग-2 भाग-3 भाग-4 भाग-5 भाग-6 भाग-7 भाग-8 भाग-9
एक बार डायरी पढनी शुरु की तो फिर उसे छोड नहीं पाया ।  सोना तो दूर अधलेटा जिस करवट पढना शुरु किया था उसी स्थिति में मैं आखिर तक टँगा रह गया ।  बाद में जब मैंने इस डायरी के बारे में खोज बीन शुरु की तब यह पता चला कि कैमिलस नाम का यह इटैलियन पादरी 1910 में इलाहाबाद डायोसिस का सर्वोच्च पादरी था ।  इलाहाबाद डायोसिस के पुराने दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि यह सिर्फ धर्म गुरु ही नहीं था बल्कि एक वास्तुविद के रूप में भी इसे लोग याद करतें हैं ।
 
 14अगस्त 1910
 
 सुबह उठा तो झडी लगी हुयी थी।  इस साल प्रभु की भरपूर कृपा हुयी है।  मानसून अच्छा बरस रहा है । कल राम अजोर माली ने बताया था कि गंगा पार उसके गांव में धान की फसल अच्छी है । नित्य क्रियायों से निपट कर बाहर बरामदे में बैठकर चाय पी।  रामअजोर की मेहनत लॉन और फूलों की क्यारियों में दिखायी दे रही थी।
 हर रविवार की तरह आज भी कुछ जल्दी थी। आज विशेष मौका यह था कि लंच पर सेंट पैट्रिक चर्च से फादर रेमिरो आने वाले थे। उनके साथ मेजर अलबर्ट आयेंगे जो अभी हाल ही में दून से इलाहाबाद छावनी आयें हैं। मैंने गिरजा जाने के पहले खानसामे को मेहमानों के बारे में बताया और लंच तैयार करने के लिये कहा। खानसामा रोशन पिछले बीस साल से इलाहाबाद डायोसिस में खाना बना रहा है। उसका बाप किसी ताल्लुकेदार का खानसामा था। बपतिज्मा लेने के बाद वह कैथेड्रल के कम्पाउण्ड में ही रहने लगा था।  उसके सभी नौ लडक़े लडक़ियां अच्छा खाना बनाते हैं। बाप के मरने के बाद सभी कैथेड्रल में ही लग गयें हैं ।  रोशन पिछले बीस सालों से किसी न किसी फादर के साथ काम करता रहा है।  तीन सालो से तो मेरे ही साथ है।  ऐसी इटैलियन डिशें बनाता है कि इलाहाबाद और वेनिस के बीच के अट्ठारह हजार मील की दूरी खत्म हो गयी लगती है। उसे सिर्फ मेहमानों की संख्या और उनके मुल्कों के नाम बताने होतें हैं और बाकी उस पर छोडा जा सकता है। आज भी मैंने यही किया और चर्च के लिये निकल पडा।
 चर्च में ठीक दस बजे प्रार्थना सभा शुरू हुयी।  बारह बजे मैं वापस लौटा। प्रार्थना सभा के पहले मुझे नैनी जेल का जेलर आगस्टीन दिखायी दे गया।  मैं पिछले कई हफ्तों से जेल नहीं जा सका था ।  इस बीच वहां कोई इसाई कैदी नहीं आया था।  आगस्टीन प्रार्थना शुरू होने पर मेरे पास आया।
 ''फादर आपके लिये एक नया मेहमान आने वाला है। ''
 उसने कहा तो मैं समझ गया कि उसके जेल में कोई नया कैथोलिक आने वाला है।
 ''प्रभु उसे अपनी शरण में लेंगे , आ जाने दो फिर मैं भी उससे मिलने आऊंगा। ''
 मैंने कहा और फिर प्रार्थना की तैयारी में लग गया।
 आगस्टीन वापस अपनी सीट पर नहीं गया और वहीं खडा रहा। मुझे लगा वह कुछ और कहना चाहता है।
 ''कितने दिन तुम्हारे पास रहेगा तुम्हारा नया मेहमान?'' मैंने पूछा ।
 ''सिर्फ तीन हफ्ते। ''
 ''इतनी छोटी सजा पर आया है - - - - कौन है यह?''
 ''सजा तो बडी है पर तीन हफ्ते में ही खत्म हो जाएेगी।  मृत्युदण्ड मिला है।  5 सितम्बर को फांसी दी जानी है। ''
 हे ईश्वर ।  मेरा मन कुछ खिन्न हो गया।  मैंने अपना ध्यान प्रार्थना पर केन्द्रित करते हुये कहा -
 ''ठीक है मास खत्म होने पर बात करेंगे। ''
 मास खत्म होने पर मैंने आगस्टीन को अपने घर चलने के लिये निमंत्रित किया।  वहां आराम से बात हो सकती थी। अभी मेरे मेहमानों के आने में वक्त था। आगस्टीन तैयार हो गया। हम दोनो घर आ गये।
 बादल तभी बरस कर रूके थे। पूरे माहौल पर उमस तारी थी। मैंने बाहर बरामदे में ही कुर्सियां निकलवा लीं और आगस्टीन को वहीं बिठाकर अन्दर का इन्तजाम देखने चला गया।  खानसामे ने लगभग पूरी तैयारी कर ली थी और मेज लगाने के लिये मेरे हुक्म का इंतजार कर रहा था। मैंने उसे मेहमानों के आने तक रूकने को कहा और बाहर दो कप चाय लाने के लिये कहता हुआ आगस्टीन के पास बाहर आ गया।
 आगस्टीन इस बीच मेरे माली से लान और फूल पत्तियों के बारे में बात कर रहा था।  मुझे उसके दिलचस्पी का पता था।  मैंने हंसते हुये कहा-
 ''मेरे पास तुम्हारी तरह काम करने के लिये कैदियों की फौज नहीं है पर उम्मीद है राम अजोर ने तुम्हें निराश नहीं किया होगा। ''
 ''निराश नहीं फादर इसने तबियत खुश कर दी। इतनी अच्छी लान पूरे इलाहाबाद में दो तीन ही होंगी।  जाने के पहले मैं इसे कुछ इनाम देना चाहूंगा। ''
 इसी तरह की दो चार बातें करके हम जल्द ही नये कैदी पर आ गये।
 में कारपोरल था।  मसूरी में उसने किसी केमिस्ट की हत्या की थी और उसे फांसी की सजा हुयी है।  हाई कोर्ट से पुष्टि हो जाने के बाद वह नैनी जेल भेजा जा रहा था जहां उसे फांसी लगने वाली थी। आगस्टीन को आज सुबह जो तार मिला था उसके मुताबिक कल दोपहर वह टे्रन से इलाहाबाद लाया जा रहा है । स्टेशन से नैनी जेल तक ले जाने के लिये एक बैलगाडी और गारद का इन्तजाम करने के लिये आगस्टीन ने पुलिस सुपरिन्टेन्डेंट को लिख दिया है।  आगस्टीन को अभी सिर्फ इतना मालुम था। कैदी के साथ उसके मुकदमें के कागजात आने पर ही पता चल सकेगा कि उसने किसकी हत्या की थी और उसके पीछे क्या कारण रहें होंगे? कैदी के पूरे कागजात नहीं आये थे लेकिन उसके ओहदे से आगस्टीन का अंदाज था कि वह 27-28 साल का नौजवान होगा। मेरा मन बुझ गया।
 आगस्टीन जल्दी में था। मैंने उसे अपने यहां आने वाले मेहमानों के बारे में बताया और उसे भी खाने के लिये रूकने का आग्रह किया। फादर रेमिरो को तो वह जानता भी था लेकिन क्षमा मांगकर वह उठ खडा हुआ। मैं उसे छोडने गेट तक गया। माली गेट पर खडा था। आगस्टीन ने उसे आठ आने इनाम के तौर पर दिया। माली ने झुककर सलाम किया और गेट खोल दिया।
 उसी समय फादर रेमिरो का तांगा हमारे सामने आकर रूका। आगस्टीन रूक गया। तांगे से फादर रेमिरो के उतरते ही वह अभिवादन करने उनकी तरफ बढा । आगस्टीन के अभिवादन का उत्तर देते हुये फादर रेमिरो ने अपने साथ आये दूसरे आंगतुक से उसका परिचय कराया -
 ''इनसे मिलो।  यें हैं मेजर अलबर्टो। पिछले दिनो देहरादून से यहां तबादले पर आयें हैं। ''
 फिर मुझसे हाथ मिलाते हुये बोले -
 ''अच्छा हुआ आज आगस्टीन भी लंच पर हमारे साथ होंगे। बहुत दिनो बाद मुलाकात हो रही है। ''
 ''नहीं फादर मैं नहीं रूक पाऊंगा। मुझे वापस जेल जाना है क़ल एक कैदी बाहर से आ रहा है, उसके लिये कुछ इन्तजाम करने हैं। ''
 ''ऐसा कौन कैदी है जिसके लिये जेलर को इतना परेशान होना पड रहा है ?''
 ''फादर कोई गोरा फौजी है जिसे तीन हफ्ते बाद फांसी पर चढना है। ''
 ''ओह। । । । । । ।  ''
 फादर रेमिरो का चेहरा लटक गया लेकिन मेजर अलबर्टो की प्रतिक्रिया ने हम सबको चौंका दिया।  अलबर्टो मेरे पास ही खडा था और मेरी ही तरह फादर रेमिरो और आगस्टीन के संवाद को खत्म होने का इंतजार कर रहा था। आगस्टीन की बात सुनते ही वह उसकी तरफ लगभग झपटा।
 ''क्या कारपोरल एलन तुम्हारी जेल में आ रहा है ?''
 ''हां वही है।  पर तुम उसे कैसे जानते हो?''
 ''लम्बी कहानी है सुनने के लिये तुम्हें लंच तक हमारे पास रूकना पडेग़ा। ''
 जेलर आगस्टीन के चेहरे पर हिचकिचाहट साफ झलक रही थी।
 ''कम ऑन आगस्टीन ।  ये मत सोचो कि मैंने तुम्हें पहले से निमंत्रित नहीं किया था। तुमसे जो ताल्लुकात हैं उनमें इस तरह की औपचारिकता की जरूरत शायद नहीं है।  मेरा कुक बहुत होशियार है। हुकुम मिलते ही वह तीन लोगों के खाने को चार लायक बना देगा। ''
 मैने आगस्टीन के संकोच को दूर करने की कोशिश की ।
 पता नहीं यह मेरा प्रयास था , मेजर अलबर्टो के मुंह से एक दिलचस्प प्रसंग सुनने की उत्सुकता या कुछ और कि जब फादर रेमिरो ने हल्के से आगस्टीन का हाथ पकडक़र अन्दर की तरफ चलने का इशारा किया तब वह मना नहीं कर पाया।
 अगले एक घंटे में मेजर अलबर्टो ने हमें जो कहानी सुनायी वह मनुष्य की क्रूरता एवं कृतघ्नता की ऐसी कथा थी जिसे हममे से कोई भी अपने जीवन में दोहराना नहीं चाहेगा।  31 अगस्त 1909 की वह सुबह मेजर अलबर्टो को अच्छी तरह याद है जब लैण्डोर कनवालसेंस डिपो के उसके दफ्तर में पुलिस के दो सिपाही बदहवास से पहुंचे थे। अलबर्टो कनवालसेंस डिपो का कमाण्डिंग अफसर था और सुबह की पी। टी।  में भाग लेने के बाद अस्पताल की बैरकों का चक्कर लगाते हुये अपने दफ्तर पहुंचा ही था।  रोज की तरह आज भी वह साढे पांच बजे सुबह पीटी ग्राउण्ड पर पहुंचा था। सूबेदार मेजर ने स्टेशन पर मौजूद स्वस्थ जे। सी। ओ।  और एन। सी। ओ।  को फालिन कर उसे रिपोर्ट दी। मेजर अलबर्टो ने स्टेशन के दूसरे सात अफसरों के साथ थोडी देर वर्जिश की और सूबेदार मेजर को पी। टी। जारी रखने की हिदायत देते हुये दूसरे अफसरों को साथ लेकर बैरकों का चक्कर लगाने निकल पडा।
 1827 में निर्मित यह कनवालसेंस डिपो मुख्य रूप से ईस्ट इन्डिया कम्पनी के अंग्रेज सिपाहियों एवं अधिकारियों के स्वास्थ्य लाभ के लिये बनाया गया था।  डिपो में खास तौर से फ्र्रंटियर के अफगान युध्द के घायल सैनिक इलाज के लिये आते थे। उनके अलावा मैदानी इलाकों की भीषण गर्मी से पीडित या छोटे बडे युध्दों में घायल सिपाही यहाँ के अस्पतालों में भर्ती रहते थे। रोज की तरह भर्ती मरीजों का हाल चाल पूछते और डाक्टरों से उनके इलाज के बारे में बात करते हुये वह अपने दफ्तर तक आ गया। एक निर्धारित दिनचर्या थी।  परेड के बाद थोडी देर वह दफ्तर रूकता था जहाँ एडजुटेंट उसे जरूरी डाक दिखाता था, वे दिन भर के कार्यक्रमों के बारे में बातें करते और 9 बजे वह वापस अपने बंगले पर चला जाता। नहाने धोने और नाश्ता करने के बाद, जिसमें लगभग दो घंटा लगता होगा, वह वापस अपने दफ्तर लौटता।
 उस दिन भी डाक देखकर वह उठने ही वाला था कि स्टिकमैन आर्डरली ने अन्दर कमरे में आकर सलाम किया -
 ''साहब पुलिस के दो सिपाही मिलना चाहतें हैं। ''
 अलबर्टो ने कोफ्त से एडजुटेन्ट की तरफ देखा। सुबह के तीन घण्टों ने उसे थका दिया था। वह घर जाकर आराम करना चाहता था। ऐसे समय किसी तरह का खलल उसे अच्छा नहीं लगा।
 एडजुटेंट उसकी नजरें पहचानता था।  वह बाहर चला गया।
 बाहर से एडजुटेंट थोडी देर में ही अंदर आ गया। उसके साथ एक सिपाही भी था।  सिपाही ने कमरे में घुसते ही सलाम किया पर बोला कुछ नहीं। एडजुटेंट ने ही किस्सा बयान किया।
 मसूरी के माल रोड पर कैमिस्ट शाप पर बैठने वाले जेम्स की बीती रात हत्या हो गयी थी।  अलबर्टो के लिये यह खबर बुरी तरह से चौंकाने वाली थी। वह जेम्स को जानता था।  दरअसल लैण्डोर डिपो में रहने वाले सारे फौजियों के लिये यह सदमा पहुँचाने वाली बात हो सकती थी। जेम्स के फौजियों से बडे अच्छे ताल्लुकात थे । लगभग सभी को वह नाम से पुकारता था।  फौजी दिन भर उसकी दूकान पर भीड लगाये रहते थे। वे जहाँ जुआ खेलते, शाम को शराब पीते और पैसा खत्म होने पर जेम्स से ही कर्ज लेते।
 कभी कभी जेम्स लैण्डोर भी आता और कई बार अलबर्टो से भी मिलता। अलबर्टो उससे मजाक में शिकायत भी करता कि उसकी वजह से स्टेशन के अनुशासन पर बुरा असर पड रहा है।  रोज कोई न कोई नाइट रोल काल से अनुपस्थित मिलता है और सभी जानते थे वह कहां होगा।
 अलबर्टो ने जेम्स को हमेशा एक खुशमिजाज और बेफिक्र इंसान के रूप में देखा।  ऐसे व्यक्ति की किससे दुश्मनी हो सकती है ? लेकिन एडजुटेन्ट के पास तो इससे भी बुरी खबर थी।
 पुलिस को लैण्डोर डिपो में भर्ती कारपोरल एलन पर शक था।  वही शख्श था जो जेम्स के साथ देखा गया था ।  वे उसी की तलाश में लैण्डोर आये थे । कौन है यह कारपोरल एलन? अलबर्टो ने एडजुटेन्ट की तरफ खोजती निगाहें डालीं।
 एडजुटेंट को भी पक्का यकीन नहीं था लेकिन उसे नाम सुना हुआ लग रहा था।  शायद 14 वीं लाइट कैवेलरी का सिपाही था। उसने सूबेदार मेजर को बुलवा भेजा था। उसके आने पर स्पष्ट हो पायेगा।
 थोडी देर में ही सूबेदार मेजर बदहवास सा लगभग दौडता हुआ वहां पहुंचा। एडजुटेंट का बुलावा मिलने के पहले ही खबर उस तक पहुँच गयी थी। सिर्फ उसको नहीं स्टेशन के सभी लोगों को जेम्स की हत्या की खबर मिल गयी थी। जेम्स के मित्रों की संख्या काफी अधिक थी । परेड ग्राउण्ड पर, अस्पताल में , बैरकों में हर जगह लोग झुण्ड मे खडे होकर इसी बारे में बातें कर रहे थे।
 पुलिस के दोनो सिपाहियों ने कमाण्डिंग आफिसर के कार्यालय तक पहुँचने के पहले रास्ते में जिन लोगों से बातचीत की थी उन सभी ने स्टेशन के चप्पे चप्पे तक यह सूचना पहुँचा दी थी।  न सिर्फ जेम्स की हत्या बल्कि कारपोरल एलन के हत्यारा होने की जानकारी सभी को मिल गयी थी। जितनी स्तब्धकारी जेम्स की हत्या थी उससे कम एलन की भागीदारी नहीं थी।  जिस तरह जेम्स खुशमिजाज और दोस्तबाज मनुष्य के रूप में जाना जाता था उसी तरह एलन भी हमेशा हंसते हुये खिलंदडे सिपाही के रूप में अपनी पलटन में मशहूर था।  ऐसा आदमी हत्यारा कैसे हो सकता था?
 का सिपाही था। फ्रन्टियर की पहाडियों पर अफगानों से लडता हुआ बुरी तरह जख्मी हुआ था। जख्म कुछ भर जाने और यात्रा लायक हो जाने पर वह साल भर पहले ही इस डिपो पर स्वास्थ्य लाभ के लिये आया था। अब पूरी तरह स्वस्थ हो गया था और वापस अपनी पलटन जाने वाला था। लैण्डोर डिपो से वापस जाने के पहले उसने तीन महीने की छुट्टी मांगी थी और कल शाम ही वह रवाना हुआ था।  सूबेदार मेजर को इस लिये यह सब स्पष्ट याद था क्योंकि कल अपराहृ छुट्टी पर रवानगी के पहले वह उसके सामने पेश हुआ था।
 कनवालसेंस डिपो पर नियम यह था कि छुट्टी पर रवाना होने के पहले और छुट्टी से लौटने के बाद हर सैनिक एडजुटेंट के सामने पेश होता था।  कल दोपहर बाद एलन सूबेदार मेजर की बैरक में आया और उसे एडजुटेंट के सामने पेश करने के लिये कहा । एडजुटेंट तीन बजे खेल के मैदान पर होता था इसलिये उसने एलन को पाँच बजे तक इंतजार करने के लिये कहा। एलन जल्दी मचा रहा था। वह पूरी तरह रात घिर जाने के पहले राजपुर पहुँच जाना चाहता था।  उसे बहस करता देखकर सूबेदार मेजर ने अपने जोखिम पर उसे जाने दिया। शाम को वह एलन के छुट्टी के कागज एडजुटेंट के सामने रखना चाहता था पर एडजुटेंट दफ्तर में बैठा ही नहीं। आज यह घटना हो गयी।
 सूबेदार मेजर ने स्टेशन का कानून जरूर तोडा था परन्तु इसमें उसकी कोई बदनीयती नहीं थी। वह अनुशासन का पक्का था और कमाण्डिग अफसर तथा एडजुटेंट दोनों उसकी इस बात के कायल थे इसलिये उसके साथ ज्यादा डाँट फटकार नहीं हुयी।
 मेजर अलबर्टो ने सूबेदार मेजर और एडजुटेंट को पुलिस के सिपाहियों को लेकर माल रोड पहुँचने का हुक्म दिया। अपने बंगले पर पहुँचकर उसने जल्दी-जल्दी स्नान किया ,वर्दी बदली और साइस को घोडा तैयार कर लगाने के लिये कहा। जितनी देर में घोडा कस कर तैयार किया गया उसने हल्का फुल्का नाश्ता कर लिया। उसका पूरा ध्यान जेम्स की हत्या पर था।  बार बार जेम्स का चेहरा आंखों के सामने घूम जाता।  क्यों हुयी होगी उसकी हत्या? वह एलन की शक्ल याद करने की कोशिश कर रहा था पर कोई स्पष्ट आकृति नहीं उभर रही थी। कनवालसेंस डिपो पर चार सौ से अधिक मरीज थे। इसके अलावा स्टेशन पर दूसरी टुकडियां भी थीं। इनमें से एलन का चेहरा याद करना बहुत मुश्किल था। जो भी हो हुआ बहुत बुरा। अलबर्टो को इस स्टेशन पर दो साल हो चुके थे और वह जल्द ही पोस्टिंग की उम्मीद कर रहा था। ऐसे समय एक धब्बा उसके कैरियर पर लग ही गया।
 पहाडी रास्तों पर जरूरी सावधानी को कई बार नजर अंदाज करता हुआ तेज रफ्तार से अलबर्टो माल पहुँचा। लाइब्रेरी से थोडा आगे बढते ही उसे हवा में घुली सनसनी सूंघने का मौका मिल गया। थोडी थोडी दूर पर पहाडियों और गोरों के छोटे छोटे झुण्ड रास्ते के किनारे खडे होकर इसी हत्या की बातें कर रहे थे । मसूरी के बसने के बाद यह पहली हत्या थी और वह भी एक इतने लोकप्रिय इंसान की भी मिले जो माल की तरफ भागे चले जा रहे थे। उनके अभिवादन का जवाब देता हुआ जब वह माल पहुंचा तो दूर से ही उसे केमिस्ट की दूकान के चारों तरफ गोरे फौजियों की भीड दिखायी पडी ।
 अलबर्टो के घोडे क़े लिये भीड ने रास्ता बना दिया। दूकान के सामने जाकर उसने घोडा रोका और हवा में छंलाग लगाते हुये घोडे से उतरा। इस बीच एक सिपाही ने घोडे क़ी रास पकड ली। उसके आने की खबर पाकर दूकान के अन्दर से एडजुटेंट और सूबेदार मेजर निकल आये। वे उसके आने के थोडा पहले ही वहाँ पहुंचे थे और केमिस्ट शाप के अन्दर पुलिस के जमादार से मामले के बारे में जानकारी ले रहे थे।  उनके पीछे पीछे जमादार भी निकल आया। तीनों के अभिवादन का जवाब देता हुआ अलबर्टो तेजी से दूकान के अन्दर चला गया।
 अन्दर दूकान में कुछ खास नजर नहीं आ रहा था। सब कुछ वैसा ही था जैसा कि किसी केमिस्ट शाप में हो सकता था।
 ''हुजूर अंदर चलें। '' जमादार ने दूकान के पीछे बने कमरे की तरफ इशारा किया्र
 अंदर जाकर अलबर्टो को समझ आया कि दूकान से सटा कमरा जेम्स की रिहायश थी।  कमरा कोई बहुत बडा नहीं था।  एक तरफ तख्त था जिस पर बिना सलवटों वाला बिस्तर इस बात की गवाही दे रहा था कि उसपर रात में कोई सोया नहीं था। कमरे के बीचों बीच एक कुर्सी आधी उलटी पडी थी। कमरे में फर्श पर खून और काँच के टुकडे बिखरे पडे थे। पास ही में एक बोतल आधी टूटी पडी थी।
 अलबर्टो की निगाह कमरे के एक कोने में कुर्सी पर बैठी एक औरत पर पडी ज़ो हौले हौले सुबक रही थी। वह फौरन उसे पहचान गया।  यह तो मिसेज सैमुअल थीं जिनके पति कैप्टन सैमुअल की कई वर्ष पहले सहारनपुर में मृत्यु हो गयी थी। मसूरी के सोशल सर्कर्िल में अक्सर उनसे मुलाकात होती रहती थी ये यहाँ क्यों हैं ? यह पूछने का समय नहीं था अतः वह चुप ही रहा।
 लाश का मुआयना कर चुके जमादार ने बताया कि हत्या हुये कम से कम बारह घण्टे हो गयें हैं।  हत्यारे ने पहले मृतक के सिर पर बोतल से प्रहार किया था और फिर किसी तेज धार वाले टीन के टुकडे से उसकी गर्दन इस तरह काटी थी कि एक कान से दूसरे कान तक चीरा लग गया था।  गले के बीचौं बीच एक सूराख दिख रहा था जिससे अभी भी खून टपकता सा लग रहा था।  फर्श पर खून थक्कों में चिपक कर काला पड चुका था। लाश में हल्की सडन शुरू हो गयी थी। जिस नृशंश तरीके से जेम्स को मारा गया था उसे देखकर अलबर्टो के लिये कमरे में खडा रहना मुश्किल हो गया। वह बाहर दूकान में आ गया। उसके पीछे पीछे उसके दोनों अफसर भी बाहर आ गये।
 दूकान में बैठकर उन्होंने अगली कार्यवाही के बारे में तय किया। जमादार हिन्दुस्तानी था और कातिल तथा मकतूल दोनो गोरे , इसलिये थोडा घबराया सा लग रहाा था पर मेजर अलबर्टो ने उसका हौसला बंधाया।  सूबेदार मेजर जो सूचनायें एलन के बारे में इकट्ठी कर पाया था उसके मुताबिक उसे देहरादून जाकर आगे के लिये ट्रेन पकडनी थी।  अगर वह हत्या के फौरन बाद भी रवाना हुआ हो तब भी सात मील का पहाडी रास्ता तय कर वह भोर के पहले राजपुर नहीं पहुँचा होगा और ज्यादा उम्मीद थी कि वह राजपुर में ही किसी जगह आराम कर रहा होगा या फिर अभी राजपुर से देहरादून के रास्ते पर किसी बैलगाडी में थोडी दूर गया होगा।  अलबर्टो ने दो मजबूत कद काठी वाले सिपाही तैयार करने को कहा और सूबेदार मेजर को उनके साथ दो गोरे फौजी भेजने का हुकुम दिया।  आधे घंटे में ही दो हिन्दुस्तानी सिपाही और दो गोरे फौजी पहाडी टट्टुओं पर राजपुर के लिये निकल पडे। उनके पास मेजर अलबर्टो का देहरादून के पुलिस कप्तान के नाम एक खत भी था।
 उनका अनुमान सही निकला । दो घंटे बाद जब यह टुकडी राजपुर पहुँची तो एलन उन्हें वहीं मिल गया।  राजपुर में जहाँ जंगल खत्म होता था और पहाडी शुरू होती थी वहीं पर दो तीन परचून की दूकानें थीं। पहली दूकान पर पूछते ही पता चल गया कि एक फौजी रात भर पहाडी रास्ते का सफर तय करके सुबह सवेरे उस दूकान पर पहुँचा था। रात भर के सफर की थकान और नींद से उसके कदम लडख़डा रहे थे।  उसने इस दूकान पर तंबाखू खरीदी और रूकने के लिये किसी सराय का पता पूछा था। । दूकानदार ने उसे थोडी दूर पर स्थित एक सराय का नाम बता दिया। वहाँ गोरे फौजी मसूरी से आते जाते रूकते थे। टुकडी क़े सिपाहियों ने घोडों से उतरने की जगह सीधे सराय का रास्ता लिया।  सराय में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी । हुलिया बताते ही सराय मालिक ने उन्हें उस कमरे के सामने ले जाकर खडा कर दिया जिसके अंदर एलन सो रहा था।
 थोडी देर खटखटाने के बाद दरवाजा खुला और आधी नींद से जगा एलन उनके सामने था।  मामला गोरे का था इसलिये हिन्दुस्तानी सिपाही खडे रहे लेकिन गोरे फौजियों ने झपटकर एलन की मुश्कें कस दीं। अचानक हमले से एलन घबराया जरूर लेकिन जल्द ही उसने हाथ पैर फेंकना और अंग्रेजी में हमलावरों को गालियाँ देनी शुरू कर दीं। पर उसकी चली नहीं।  काले सिपाही भी गोरों की मदद को आ गये और उन चारों ने एलन को निरूपाय कर दिया। तलाशी में दो ऐसी चीजें मिलीं जो इस हत्या की तफतीश में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती थीं ।  उसके बस्ते से कुछ सोने के सित्के मिले ।  जेम्स को हत्या वाले दिन ही वेतन मिला था और उसमें भी सोने के सिक्के थे ।  एलन के सामान में टिन का छोटा टिफिन बाक्स भी था जिसमें अधखाये सैण्डविचेज थे ।
 सबसे पहले एलन को पुलिस कप्तान के बंगले पर ले जाएा गया।
 मसूरी से आने वालों ने मेजर अलबर्टो का खत संतरी के हाथ अंदर भिजवा दिया।  थोडी देर बाद ही कप्तान के सामने उनकी पेशी हुयी।
 मसूरी से आये हुये पुलिस वालों नें कप्तान से पूरा वाकया कह सुनाया। । किस्सा सुनते सुनते उसके जबडे भिंचते गये और एलन के चेहरे पर टिकी उसकी निगाहें लाल होतीं गयीं। उसकी जानकारी में मसूरी का यह पहला कत्ल था। मसूरी उसके क्षेत्राधिकार में सबसे शांत और खूबसूरत इलाका था। कत्ल भी एक गोरे का और कातिल भी गोरा।  क्या सोचेंगे नेटिव गोरों के बारे में?
 पूरी घटना सुनने के बाद कप्तान ने कैदी के चेहरे पर निगाहें गडा दीं।  वहाँ कुछ ऐसा नहीं था जिससे पश्चाताप या दुख झलक रहा हो।  कैदी का चेहरा भावशून्य था।  वह कप्तान से सीधे आँखें भी नहीं मिला रहा था।
 ''कल रात तुमने जेम्स को क्यों मारा?''
 ''मैंने जेम्स को नहीं मारा। उसके कत्ल की जानकारी मुझे इन लोगों से पहली बार मिली है। ''
 एलन ने मसूरी से आये सिपाहियों की तरफ इशारा किया।
 उसकी आवाज के ठण्डेपन से कप्तान बिलबिला गया। उसने दोनो हिन्दुस्तानी सिपाहियों को बाहर जाने का इशारा किया। कमरे में सिर्फ चारों गोरे रह गये। एलन के दोनों हाथ पीछे को बंधे थे और उसकी कमर में एक मजबूत रस्सी थी जिसे एक गोरे फौजी ने पकड रखा था।
 कप्तान मजबूत लेकिन धीमे कदमों से एलन के सामने जाकर खडा हो गया।  कमरे में पूरी तरह से एक ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ था जिससे खौफ की अनुभूति होती है। कप्तान जिस कुर्सी पर बैठा था उसके खडे होने से जमीन पर उस कुर्सी के हल्की सी रगडने की आवाज हुयी और फिर वही खामोशी छा गयी। 
 ''तुमने उसे क्यों मारा?''
 ''मैंन उसे नहीं मारा। ''
 एक झन्नाटेदार उलटा झापड क़ैदी के मुंह पर पडा और उसका मुंह बायीं तरफ लटक गया।
 ''तुमने उसे क्यों मारा?''
 '' मैंने नहीं। । । । । । । ''
 एक और तगडा हाथ पडा और कैदी ने पिच्च से खून थूक दिया।  गाढे क़त्थई खून के साथ दाँत का आधा टुकडा भी जमीन पर गिरा।
 काफी जद्दोजहद के बावजूद कप्तान एलन से कबूल नहीं करवा पाया कि जेम्स का कत्ल उसने किया था।  थक कर वह एक कुर्सी पर बैठ गया।
 ''कोतवाल को बुलाओ। ''
 कोतवाल के बुलाने की जरूरत नहीं पडी।  मसूरी के सिपाहियों के कप्तान के बंगले पर पहुंचने और उनके साथ अंग्रेज कैदी की आमद की खबर कोतवाली तक पहुँच चुकी थी और कोतवाल बावर्दी पेटी दुरूस्त बाहर मौजूद था।  अन्दर एक गोरे फौजी की धुनाई हो रही थी इसलिये वह बाहर ही इन्तजार कर रहा था।
 हुकुम मिलते ही कोतवाल अंदर आया और उसने कप्तान को कडक़ सलामी पेश की।
 कप्तान कैदी की तरफ देखकर दाँत पीसते हुये अँग्रेजी में गालियां बक रहा था।  कोतवाल चुपचाप सर झुकाये खडा रहा।
 ''इस बास्टर्ड को बाहर ले जाओ। ''
 दोनो अँग्रेज फौजी कैदी को लेकर बाहर चले गये।
 अन्दर सिर्फ कोतवाल और कप्तान रह गये। काफी देर तक माथापच्ची करने के बाद यह तय हुआ कि एलन को वापस घटनास्थल पर ले जाएा जाए।  अपने पुराने दोस्त के हत्या की जगह देखने पर शायद उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कारे और वह अपना गुनाह कुबूल ले।
 दोपहर ढल रही थी और तीन चार घंटे में अंधेरा घिरने लगता।  वैसे भी बरसात के दिन थे और उस समय भी बादलों के कुछ टुकडे अासमान में तैर रहे थे।  कभी भी बारिश हो सकती थी।  ऐसे में जंगलों और पहाडी रास्तों से एक हत्यारे को लेकर जाना खतरे से खाली नहीं था, इसलिये तय यह हुआ कि कैदी को सुबह तडक़े मसूरी ले जाएा जाए।  रात भर के लिये एलन को कोतवाली की हवालात में बंद कर दिया गया।
 भोर में पांच बजे उनकी यात्रा शुरू हुयी।  अभी पहली किरण भी नहीं फूटी थी।  वे सात थे।  मसूरी से दो गोरे और दो देशी सिपाही आये थे।  यहाँ से कोतवाल , एलन और उसके साथ एक और सिपाही इस काफिले में शरीक हो गये।  मसूरी तक सात मील की पहाडी यात्रा तीन घंटे से कम में तय नहीं हो सकती थी।  उनके टट्टू इन पहाडी रास्तों के अभ्यस्त थे लेकिन फिर भी बहुत तेज नहीं चला जा सकता था।  शुरू में उन्होंने एलन के हाथ पीछे बाँध रखे थे लेकिन जल्द ही उन्हें खोलना पडा क्योंकि बँधे हाथों से टट्टू हांकना संभव नहीं था।
 सात लोगों का काफिला था- बीच में एलन और उसके आगे पीछे तीन -तीन टट्टू सवार।  पहाडी पगडन्डी पर दो टट्टू एक साथ नहीं चल सकते थे इसलिये उन्हें एक कतार में चलना पड रहा था। जब कभी पगडंडी पहाडियों से हटकर चौडे समतल भूभागों से गुजरती , कोतवाल के इशारे पर दो सिपाही एलन के अगल बगल अपने टट्टू लगा देते और आगे पीछे वाले भी सिमट कर एक तंग घेरा बना लेते। 
 वे जब मसूरी में जेम्स की दवा की दूकान पर पहुँचे तो सूरज ठीक सर के ऊपर चमक रहा था।  सुबह जो बादल के टुकडे दिख रहे थे वे कब के गायब हो चुके थे और तीन घंटे की कठिन या्रत्रा ने सिर्फ टट्टुओं को ही चूर नहीं किया था बल्कि उन पर सवार मुसाफिर भी पस्त हो गये थे ।  कोतवाल और हिन्दुस्तानी सिपाहियों ने अपनी पगडियां हाथों में लें लीं।  पसीना उनके माथे से पानी की धार की तरह बह रहा था।  एलन नंगे सर था पर उसका पूरा माथा और सर के बाल भी पसीने से लथपथ थे।
 हत्या हुये चौबीस घंटे से अधिक हो गये थे और शव भी पिछली शाम को ही हटाया जा चुका था पर दूकान के आस पास हवा में सनसनी घुली हुयी थी । भीड क़ल की तरह तो नहीं थी पर इतनी तब भी थी कि कोतवाल को घोडे से उतरना पडा।  उसके पीछे बाकी सवार भी उतर गये। एक हाथ में घोडे क़ी लगाम और दूसरे में अपनी पगडी थामे वह भीड क़े बीच से केमिस्ट शाप की तरफ बढा।  एलन एक कतार में चल रहे काफिले के बीच में सर झुकाये चल रहा था।  थकान से ज्यादा शर्म उस पर तारी थी।
 ''हियर कम्स द बास्टर्ड। ''
 कोतवाल ने चौंक कर पीछे देखा।  हिंस्र उत्तेजना से भरी आवाज थी जिसे बोलने वाले ने अपना गला दबाने की पूरी कोशिश की थी पर आवाज घुटे स्वर में बाहर निकल ही आयी थी।
 भीड में गोरे फौजी भी थे और उनमें से किसी ने एलन को पहचान लिया था।
 प्रत्युत्पन्नमति कोतवाल समझ गया कि एलन को खतरा हो सकता था।  रास्ते भर दोनो गोरे फौजियों और मसूरी के सिपाहियों ने जो कुछ बताया था उससे उसे यह समझने में कोई दिक्कत नहीं हुयी थी कि जेम्स गोरे सिपाहियों के बीच बहुत लोकप्रिय था।  वे वक्त-बेवक्त उससे कर्जा लेते थे , उसके साथ रोज कोई न कोई फौजी बैठकर शराब पीता था, हर शाम उसका रिहायशी कमरा जुआरियों का प्रिय अड्डा बन जाता और लैण्डोर के हर फौजी कार्यक्रम में उसकी एक अनिवार्य उपस्थिति होती थी।
 आवाज ने भीड में बिजली का संचार कर दिया।  अगर कोतवाल अपने घोडे क़ी रास छोडते और पगडी ज़मीन पर गिराते हुये एलन की तरफ न लपकता और उसके ललकारने पर उसके साथ चल रहे दो गोरे फौजियों और तीन देशी सिपाहियों ने एलन के चारों तरफ मजबूत घेरा न बना लिया होता तो एलन भीड क़े हाथों नुच चुथ गया होता।
 कुछ तो अँग्रजी हुकूमत का अखलाख था और कुछ भीड में बडी संख्या में गोरे फौजियों की उपस्थिति जो लाख गुस्से के बावजूद अनुशासन की डोर में बंधे थे, कि कोतवाल और उसके साथी एलन को लेकर भीड चीरते हुये केमिस्ट शाप में घुस गये।  इसी बीच मसूरी में मौजूद पुलिस जमादार अपने कुछ चौकीदारों के साथ पहुँच गया।  वह कब्रिस्तान में जेम्स के दफनाने का इंतजाम देख रहा था, कोतवाल के आने की खबर सुनते ही भागता हुआ आया।  उसके साथ के चौकीदारों ने टट्टुओं को संभाल लिया और उनमें से कुछ को जमादार ने भीड क़ो नियंत्रित करने के लिये लगा दिया।
 सबसे मुश्किल था भीड क़ो नियंत्रित करना।  वक्त बीतने के साथ भीड और उसका पागलपन दोनो बढता जा रहा था।  चौकीदार अपनी लाठियों में लगी बर्छियों को चमका चमका कर भीड को दूर रखने की कोशिश कर रहे थे पर भीड क़ो संभालना मुश्किल हो रहा था।  बाहर से बस इतना दिख रहा था कि दूकान में एक स्टूल पर भीड क़ी तरफ पीठ करके एलन बैठा हुआ था।  उसे घेर कर देहरादून से आये कोतवाल और उसके साथी खडे थे।  दूर से ऐसा लगता था कि कोतवाल एलन से पूछ रहा था और एलन उसका जवाब दे रहा था ।  कोतवाल के चेहरे पर झुंझलाहट से साफ था कि वह एलन के जवाब से संतुष्ट नहीं हो पा रहा था।
 बाहर हर कोई एलन की झलक पाना चाहता था।  भीड इतनी ज्यादा हो गयी थी कि केमिस्ट शाप के सामने शायद ही कोई खाली जगह बची थी जहाँ लोग न खडें हों । लैण्डोर छावनी तक खबर पहुँच गयी थी और वहाँ से भी धीरे धीरे गोरे फौजी आने लगे थे ।  भीड क़े देशी पहाडी तो सिर्फ एलन को देखना चाहते थे।  खुले आम किसी गोरे के खिलाफ , चाहे वह हत्यारा ही क्यों न हो , बोलना उनके लिये मुश्किल था।  वे सिर्फ गोरों की धकापेल से बचकर उस हत्यारे को एक नजर देखना चाहते थे जिसने अपने मित्र की हत्या करके कृतध्नता की खास मिसाल पैदा की थी।
 पहाडियों से भिन्न गोरे उन्माद से पगलाये हुये थे।  वे खून का बदला खून से लेना चाहते थे । उनमें से कुछ जिन्होंने जेम्स के साथ दोस्ताना वक्त बिताया था, ज्यादा उत्तेजित थे।  एक दूसरे को धकेल धकेल कर वे सामने आ जाते और हवा में मुट्ठियाँ तान तान कर एलन को गालियाँ देते।  चौकीदारों के लिये उन्हें रोकना मुश्किल हो रहा था।  वे माँग कर रहे थे कि एलन को उन्हें सौंप दिया जाए।  वे उसकी बोटियाँ काट डालना चाहते थे।
 अन्दर कोतवाल एलन से पूछताछ जरूर कर रहा था पर उसके कान बाहर से आने वाली आवाजों की तरफ ही लगे थे।  उसे समझ में आ गया था कि यदि जल्दी ही एलन को वहाँ से नहीं निकाला गया तो उसके चौकीदारों और तीन सिपाहियों के वश का नहीं था कि पगलाई गोरी भीड क़ो देर तक रोक सकें।  एक बार एलन उनके हाथ आ गया तो फिर उसका क्या हश्र होगा इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी।  वह जल्दी से जल्दी एलन को वहां से निकाल कर वापस राजपुर ले जाना चाहता था पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव हो सकेगा?
 यह उम्मीद कि एलन अपने दोस्त के हत्या स्थल पर आते ही भावुक हो जाएेगा और टूट जाएेगा- सही नहीं साबित हुयी।  एलन पूरी तरह निर्विकार बैठा रहा।  कोतवाल की झुंझलाहट इसी बात पर थी कि कई बार पूछने पर उसने एक एक वाक्यों में जो जवाब दिये उन सबको मिला दिया जाए तो उनसे सिर्फ यही अर्थ निकाला जा सकता था कि उसने जेम्स को नहीं मारा।  वह पिछली रात जेम्स के पास आया जरूर था लेकिन उसके साथ बैठकर सिर्फ एक पेग शराब पीकर वह चला गया था। जेम्स के यहाँ से उठकर वह कहाँ गया - वह नहीं बतलायेगा, उसके पास जो टिन का डिब्बा मिला है उसमें किसी ने सैण्डविचेज दिये थे, सैण्डविचेज मसूरी से राजपुर के रास्ते में उसने खा लिये, सैण्डविचेज किसने दिये थे वह नहीं बतायेगा। सोने के सिक्के जरूर जेम्स के थे लेकिन उन्हें हत्या के काफी पहले जेम्स ने कर्ज के रूप में उसे दिया था।  उसने जेम्स का कर्ज अपनी तनख्वाह में मिले कागज के नोटौं से चुका दिया था ।  सिक्के सुविधा के लिहाज से यात्रा में ले जाना आसान था इसलिये रख लिये थे ।
 कोतवाल को ज्यादा गुस्सा एलन की धृष्टता पर नहीं अपनी अक्षमता पर आ रहा था कि वह कैदी का कुछ बिगाड नहीं सकता था।  अपने इलाके में अपराधियों के लिये वह आतंक का पर्याय था। बडे बडे ख़ूनी और डकैत उसके सामने आने पर थर थर काँपते थे।  वह खुद बडे ग़र्व से सबको बताता था कि उसके पेशाब से चिराग जलता है लेकिन यहाँ तो मामला एकदम उल्टा था।  सामने जो बैठा था वह हत्यारा होने के अलावा गोरा भी था।  यानि शासक वर्ग का सदस्य।  पुलिस रेगुलेशन भी यही कहता था कि उसको सिर्फ एंग्लो इण्डियन सारजेंट ही गिरफ्तार कर सकता था।  वही उससे कडाई से पूछताछ भी कर सकता था। 
 अभी तो ज्यादा बडी समस्या थी कि एलन को कैसे बदले पर उतारू भीड से बचाकर निकाल ले जाएा जाए और कैसे राजपुर तक पहुँचाया जाए!
 इस विकट स्थिति से कोतवाल को उबारा जमादार ने।  जमादार देहरादून थाने में तैनात था लेकिन मसूरी में रहता था।  उसे और उसके साथ नियुक्त चार सिपाहियों के कन्धों पर मसूरी, लैण्डोर और आसपास के लगभग 20 गाँवों की जिम्मेदारी थी जिसे वह इन गाँवों के चौकीदारों की मदद से पूरा करता था।  वह मसूरी के पास के ही एक गाँव का रहने वाला था और उसकी पूरी जिंदगी वहीं बीती थी।  वह मसूरी के हर छोटे बडे क़ो जानता था।  पिछले छत्तीस घंटों से वह सोया नहीं था पर कोतवाल के आने के बाद से पूरी तरह से चौकन्ना नजर आ रहा था।
 कोतवाल अन्दर एलन से पूछताछ कर रहा था और वह अपने सिपाहियों और चौकीदारों को लेकर भीड क़ो दूकान से दूर रखने की कोशिश में लगा था।  वह भी समझ रहा था कि ज्यादा देर तक गोरे फौजियों को रोकना मुश्किल था।  उसने एक सिपाही को लैण्डोर छावनी रवाना कर दिया था ताकि स्टेशन के अफसरों को यहाँ की स्थिति का पता चल जाए और फौजियों को नियंत्रित करने के लिये वे भी कोई कुमुक भेज दें पर लैण्डोर जाने और वहां से मदद आने में वक्त लग सकता था।  तब तक उसे ही स्थिति संभालनी थी।
 अचानक बाहर भीड क़ो नियंत्रित करते - करते उसने कुछ देखा और वह अंदर की तरफ लपका।
 अन्दर आकर कोतवाल के कान में वह कुछ फुसफुसाया।  कोतवाल अविश्वास से सर हिलाता रहा।  साफ था कि जमादार की बातें उसे आश्वस्त नहीं कर रहीं थीं लेकिन शायद कोई विकल्प था भी नहीं इसलिये उसने आँख के इशारे से उसे अपनी सहमति दे दी और जमादार अन्दर के कमरे में चला गया।  दूकान से सटा जो कमरा था और जहाँ जेम्स की हत्या हुयी थी उससे एक दरवाजा बाहर गली की तरफ खुलता था ।  जमादार उससे बाहर निकल कर गायब हो गया।
 थोडी देर बाद उसी दरवाजे से वह वापस आया और उसके साथ एक गोरा था। रस्ट नाम वाला यह गोरा स्थानीय फोटोग्राफर था जिसने स्थानीय अखबार के लिये कल भी तस्वीरें उतारीं थीं और आज भी कोतवाल के आने की खबर पाकर आया हुआ था।
 फोटोग्राफर रस्ट की माल रोड पर ही फोटोग्राफी की इकलौती दूकान थी।  वह जेम्स का दोस्त था और एलन को पहचानता था।  जेम्स की दूकान पर एलन के साथ उसने कई बार शराब पी थी और दो एक बार ताश के हाथ भी आजमाये थे। अपनी कद काठी से वह काफी हद तक एलन जैसा ही था।
 अन्दर लाकर रस्ट को जमादार ने जेम्स के शयनकक्ष में बिठा दिया और दूकान में खुलने वाले दरवाजे से झाँक कर कोतवाल को अन्दर आने का इशारा किया।  रस्ट कुर्सी पर बैठा था।  कोतवाल ने अन्दर आकर उसका अभिवादन किया और उसके पास ही खडा हो गया।  जमादार भी वहीं था, कोतवाल ने उसे बात करने का इशारा किया।
 जमादार ने अदब से झुककर रस्ट के कान में कुछ कहना शुरू किया।  उसने अभी दो एक वाक्य ही कहें होंगे कि रस्ट को हंसी का दौरा पड ग़या और वह खडा हो गया।
 बात थी ही कुछ ऐसी।  जो योजना रस्ट के सामने रखी गयी उसके मुताबिक उसे एलन की जगह लेनी थी ।  एलन की कमीज पहनकर तब तक अपनी पीठ बाहर खडी भीड क़ो दिखानी थी जब तक पुलिस एलन को सुरक्षित निकाल कर राजपुर का आधा रास्ता न पार कर ले।  रस्ट को यह पूरा सुझाव काफी मजेदार लगा।  उसके खडे होते ही जमादार और कोतवाल के चेहरे उतर गये।  इसके बाद एलन के बचने का और क्या रास्ता हो सकता था?
 ''ओके सर हम करेगा। ''
 कोतवाल और जमादार दोनों के चेहरे खिल गये।  लगता था कि बात बन गयी है।
 एलन को अन्दर लाकर जमादार ने अपनी कमीज उतारने के लिये कहा।  उसने चौंक कर जमादार को देखा।  वह कैदी जरूर था पर कोई हिन्दुस्तानी पुलिस वाला उसके साथ गुस्ताखी नहीं कर सकता था।
 रस्ट नें स्थिति स्पष्ट की । वह जेम्स का दोस्त था और हत्या ने उसके मन में एलन के लिये गुस्सा भी भर रखा था पर वह यह नहीं स्वीकार कर सकता था कि भीड एलन को पीट पीट कर मार डाले।  कानून एलन को फाँसी पर लटका देगा तो उसे बहुत खुशी होगी पर अभी उसकी मदद करने में उसे कोई दुविधा नहीं हुयी।
 ''अपनी शर्ट मुझे दो और मेरी तुम पहन लो। '' कमीज के बटन खोलते हुये उसने कहा।
 एलन समझ गया।  बाहर उग्र भीड ज़िस तरह चिल्ला चिल्ला कर उसे सौंपने की माँग कर रही थी और हिन्दुस्तानी कोतवाल और सिपाहियों के परेशान तथा खौफजदा चेहरों को देखकर उसे काफी देर से लग रहा था कि कभी भी भीड चौकीदारों को धकेलती हुयी अंदर घुस आयेगी और पीट पीट कर उसका कचूमर निकाल देगी।  वह अंदर से बुरी तरह हिल गया था और ऊपर से चाहे जितना शांत दिखने की कोशिश कर रहा हो खौफ की लकीरें उसके चेहरे पर बार बार उभर आ रहीं थीं।  रस्ट का प्रस्ताव किसी अप्रत्याशित चमत्कार से कम नहीं था।  उसका तनाव कुछ ढीला पडा।
 एक सिपाही रस्ट की कमीज पहने एलन को इस तरह बाहर ले गया कि उसका पूरा शरीर कोतवाल की आड में छिपा रहा।  दूसरे सिपाही ने उस स्टूल को जिस पर एलन बैठा था इस तरह खिसका दिया कि उस पर बैठे रस्ट का चेहरा भीड क़ी दृष्टि से बाहर हो गया।  सिर्फ पीठ बाहर से दिखती रही।  एलन और रस्ट कद काठी में एक जैसे ही थे।  दूर से उनमें फर्क करना मुश्किल था।  कोतवाल थोडी देर रस्ट से पूछताछ का नाटक करता रहा और फिर जमादार को अपनी जगह छोडक़र वापस अन्दर वाले कमरे में आ गया।
 जमादार ने बाहर सारा इंतजाम कर रखा था।  एलन को मसूरी लाने वाली एस्कोर्ट पार्टी अपने टट्टुओं को लेकर वहां से दो मील दूर राजपुर जाने वाले पहाडी रास्ते पर जंगलों में छिपी हुयी थी।  कोतवाल ने बाहर जाकर गली में झांककर देखा , पूरी गली सुनसान थी।  आस पास की आबादी केमिस्ट शाप के बाहर इकट्ठी थी।  मसूरी की पहली हत्या और वह भी अपने एक पडाेसी की - पिछले दो दिनों में शायद ही कोई सोया हो।  सब उस हत्यारे की एक झलक पाना चाहते थे जिसने यह जघन्य काम किया था, सभी हत्या का कारण जानना चाहते थे और सभी हत्यारे को सजा देना चाहते थे।
 मौका अच्छा था, कोतवाल एलन के कमर में बंधी रस्सी मजबूती से हाथों में पकडे ग़ली में निकल गया।  हाथ में बल्लम लिये दो चौकीदार आगे थे और एक सिपाही उसके पीछे।  सुनसान गली में वे तेजी के साथ आगे बढे। माल रोड पर अभी ज्यादा दुकानें या घर नहीं बने थे।  वे थोडी ही दूर चलकर ढलुआ पहाडियों पर उतर गये।  ढलान से ही जंगल शुरू हो जाता था।  थोडा चलने के बाद ही उनकी रफ्तार धीमी हो गयी।  घने दरख्तों की वजह से उन्हें देख लिये जाने का खतरा खत्म हो गया था।  नियत स्थान पर उनके टट्टू लिये दोनो अँग्रेज फौजी और कुछ चौकीदार खडे थे। हुकुम के मुताबिक वे अपने साथ कुछ खाने पीने का सामान भी लाये थे। सुबह से कोतवाल और एलन ने कुछ नहीं खाया था।  सबने जल्दी जल्दी अपने अपने पेट भरे और फिर आने के ही क्रम में एलन की वापसी यात्रा शुरू हुयी।
 मेजर अलबर्टो का वृतांत खत्म हुआ तब हमें अहसास हुआ कि हममें से कोई एक घंटे तक बोला नहीं था। आगस्टीन खास तौर से पूरी तरह डूब कर आने वाले कैदी के बारे में सुन रहा था।
 ''क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा आदमी प्रभु के चरणों में कनफेशन करेगा?'' मैंने अलबर्टो से पूछा।
 ''मुझे नहीं लगता फादर ।  वह अदालत में भी इसी जिद पर अडा रहा कि उसने हत्या नहीं की है।  पुलिस वाले उसे यह सोचकर घटना स्थल पर ले गये थे कि वहां पर पहुंचते ही वह पश्चाताप से टूट जाएेगा पर उसके ऊपर वहाँ भी कोई असर नहीं पडा।  दरअसल वह राक्षस है , कभी कनफेशन नहीं करेगा। ''
 ''देखा जाएेगा ।  प्रभु सारे पापियों को अपने शरण में ले लेतें हैं , यह भी वहाँ स्थान पायेगा। ''
 मैंने बावर्ची को खाना लगाने को कहा।  लंच के दौरान भी हम सिर्फ एलन की ही बातें करते रहे।फादर रेमिरो ने खाते खाते मुझसे कहा-
  “तुम्हें बहुत धर्य दिखाना होगा ऐसे लोग आसानी से नहीं टूटते । ''
 ''मुझे उम्मीद है फादर प्रभु मेरी मदद करेंगे।  आगस्टीन अगले इतवार को मैं तुम्हारे कैदी से मिलने आऊँगा।  तुम्हारी इजाजत है न?''
 ''फादर आपका हमेशा स्वागत है।
उपन्यास का अनुक्रम भाग-1 भाग-2 भाग-3 भाग-4 भाग-5 भाग-6 भाग-7 भाग-8 भाग-9
 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.