| मैं जब एक दूकान पर बैठकर बात कर रहा था तो आस पास के बहुत से 
              दूकानदार , उनके ग्राहक और रास्ता चलने वाले मेरे इर्द गिर्द इकट्ठे 
              हो गये । सबके पास अपने अनुभव थे । ज्यादातर ने ऊपर वाले हिस्से में 
              आधी रात के बाद अचानक बल्ब को जलता बुझता देखा था । कुछ ने तो ऊपर 
              वाली खिडकी से मैडम को झाँकते और अपने नौकर को फटकारते भी सुना था । 
              कई शर्त लगाने के लिये तैयार थे कि मैडम अकेली नहीं बल्कि उनका नौकर 
              और कुत्ता भी वहाँ आता है । लोगों के पास अलग अलग अनुभव थे और अपनी 
              उत्तेजित आवाजों में एक दूसरे को काटते हुये वे मुझे सुनाना चाहते थे 
              । वहाँ मौजूद लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि सब कुछ सुनते हुये भी 
              मैं मुस्करा रहा हूँ और जब तीसरी बार मैंने मकान मालिक का पता पूछा 
              तो बगल के एक दूकानदार ने अपने यहाँ काम करने वाले एक छोकरे को मकान 
              मालिक का घर दिखाने के लिये भेज दिया । ज्यादा दूर नहीं जाना पडा । 
              हम मुश्किल से दो सौ गज चले होंगे कि छोकरा ठिठक कर खडा हो गया । 
              सामने से एक वृद्ध सज्जन आ रहे थे । उनके एक हाथ में छाता और दूसरे 
              में एक बडा सा झोला था । शायद खरीदारी के लिये निकले थे । छोकरे ने 
              जोर जोर से हाथ हिलाकर उनका ध्यान आकर्षित किया । वे अपनी जगह पर खडे 
              हो गये । हम दोनों सडक पार करते हुये उन तक पहुँचे । जैसे ही उन्हें 
              समझ आया कि मैं उनका किरायेदार बनना चाहता हूँ उन्होंने अचकचा कर 
              पहले मुझे और फिर छोकरे को देखा । "इन्हें मैडम से डर नहीं लगता । " 
              छोकरे ने कहा तो मैंने सर हिलाया । "अरे भूत वूत कुछ नहीं है । लुच्चों ने सारी अफवाहें फैला रखीं 
              हैं ताकि कोई वहाँ टिके नहीं । खुद ये लफंगे वहीं बैठ जुआ खेलतें हैं 
              तब कोई भूत नहीं आता । सब मेरे दुश्मन हैं। "बूढा देर तक बडबडाता 
              रहा- "और वह बुढिया तो जीते जी भूत से कुछ कम थी क्या ? बाप रे बाप 
              कितनी कंजूस थी । उससे किराया लेना पुराना मकान है टूट फूट लगी रहती 
              है, यही कहकर हर साल आधा किराया तो मरम्मत में ही लगवा देती थी । उसे 
              मरने के बाद भूत बनने की क्या जरूरत है ?"  वह देर तक रिप्ले बीन को कोसता रहा । पर बीच बीच उसकी खुशी भी 
              छलकती रही । किरायेदार और ऐसा किरायेदार जो भूत के साथ रहने को तैयार 
              हो , मिलने की उत्तेजना उसकी आवाज में छलक रही थी । वह मुझे लेकर एक 
              चाय की दूकान पर बैठ गया और छोकरे को अपने घर जाकर चाभी लाने के लिये 
              कह दिया । जब तक छोकरा उसके घर से चाभी लेकर लौटा, हम दो दो कप चाय 
              पी चुके थे और मुझे रिप्ले बीन के बारे में काफी कुछ पता चल चुका था 
              ।  मकान मालिक मेरे साथ मुख्य द्वार तक तो गया लेकिन ऊपर नहीं गया । 
              उसने मुझे नीचे ही चाभियाँ थमायीं और विदा ली । उसकी जल्दबाजी को मैं 
              समझ रहा था लेकिन मुझे कोई दिक्कत भी नहीं थी। मुख्य द्वार को हल्का 
              सा धक्का देता हुआ मैं अन्दर चला गया । पुराने जर्जर , दो मंजिला 
              मकान के निचले हिस्से में दो किरायेदार थे। बीच से ऊपर जाने की 
              सीढियाँ इस तरह थीं कि बिना किसी को परेशान किये स्वतंत्र रूप से 
              ऊपरी हिस्से तक जाएा जा सकता था । नीचे के किरायेदारों के कमरे अन्दर 
              से बन्द थे पर खट पट से उनके अन्दर चल रहे जीवन का अन्दाज लगाया सकता 
              था । मैं उनमें से किसी कि बताये बिना सीढियों से ऊपर चला गया । ऊपर 
              एक बालकनी थी जहाँ से सामने हिमालय की श्रृंखलायें दिखतीं थीं । यही 
              मकान मालिक के शब्दों में, " चुडैल बुढिया खुले मौसम में दिन भर 
              राकिंग चेयर पर बैठी बैठी उसे कोसती रहती थी । " मौसम खुला था लेकिन 
              बालकनी खाली थी । बावजूद इसके कि- " बाजार के सारे लफंगे ऊपर जाकर 
              जुआ खेलतें हैं " बालकनी में धूल की एक मोटी पर्त जमी थी । बालकनी 
              में इस हिस्से के अकेले बडे कमरे का दरवाजा खुलता था , उस पर मोटा सा 
              ताला लटका था । मुझे तीन चाभियों वाला एक गुच्छा मिला था। मैंने ताले 
              को देखकर अन्दाज से जो चाभी लगायी उसी से वह खुल गया । अन्दर घुसा तो 
              सीलन जन्य बदबू का ऐसा थपेडा मुंह पर लगा कि उल्टे पैर वापस लौटना 
              पडा । कमरे को खुला छोडकर मैं कुछ देर तक बालकनी में ही खडा रहा और 
              नीचे सडक एवं बाजार की चहल पहल देखता रहा । नीचे लोगों की उत्सुकता 
              अभी तक मुझमें बनी हुयी थी वे सडक पर चलते चलते रुक कर या दूकानों से 
              बाहर निकल निकल कर मुझे देख रहे थे । बालकनी पर बिना किसी भय , स्थिर 
              खडा मैं उन्हें मुंह चिढाता सा लग रहा हूँगा, ऐसा मुझे लगा।  पर्याप्त ताजी हवा कमरे के अन्दर जा चुकी थी कि मैं अन्दर घुसा । 
              अभी भी सीलन थी पर सांस ली जा सकती थी । कमरे में अँधेरा था । बाहर 
              की रोशनी से इतना तो हुआ कि थोडी देर दम साधे खडे रहने पर स्विच 
              बोर्ड दिखायी दे गया । मैंने एक एक करके सारे स्विच आन किये पर कोई 
              बल्ब नहीं जला । यह तो मुझे बाद में पता चला कि पिछले कई वर्षों से 
              इस कमरे में बिजली नहीं थी पता नहीं बाहर वालों को कैसे बीच बीच में 
              रातों को यहाँ रोशनी दिखती थी ।  जितना भी उजाला बाहर से आ रहा था उससे मैंने अन्दर के कमरे का 
              मुआयना करना आरम्भ किया । अब तक मेरी आँखें भी कुछ अभ्यस्त हो चलीं 
              थीं । कमरा पुराने कबाड से भरा था । एक पुराना पलंग जो काफी बडा था 
              और जिसने लगभग आधा कमरा घेर रखा था , अपनी तीन टाँगों पर दीवार के 
              किनारे पडा था उसकी चौथी टाँग ईंटो पर टिकी हुयी रही होगी क्योंकि इस 
              टूटी टाँग के पास कई ईंटें गिरी पडीं थीं और पलंग उधर की तरफ लटकी 
              हुयी थी । पलंग पर लगभग चिथडा हो गयी एक बदरंग सी चादर पडी थी । कमरे 
              की दो दीवारें आलमारियों से भरी हुयीं थीं जो कभी रिप्ले बीन की 
              किताबें रखने के काम आती रहीं होंगी । आलमारियों के पल्ले या तो गायब 
              थे या लटक गये थे । खाली आलमारियों को देख कर अन्दाज लगाया जा सकता 
              था कि उनकी किताबें मकान मालिक ने रिप्ले बीन के दूसरे सामानों के 
              साथ बेच दिया था । इस कमरे से सटे दो कमरे और थे । मकान मालिक ने जो 
              विवरण मुझे दिया था उससे इनके दरवाजे खोले बिना ही मैं समझ गया कि एक 
              गुसल खाना था और दूसरा छोटा कमरा जो रिप्ले बीन के जमाने में किचन के 
              तौर पर इस्तेमाल होता था । इसलिये उन्हें खोलने की जगह मैंने अपने 
              मतलब की चीज कमरे में ही तलाशनी शुरू की । मैं अपने मकसद में थोडी 
              मेहनत के बाद कामयाब भी हो गया । नीम अँधेरे कमरे की पलस्तर उखडी 
              दीवारों पर टँगी टेढी मेढी हो गयी तस्वीरों पर ढूँढती मेरी निगाहों 
              जिसे तलाश रहीं थीं उस तक पहुँच गयीं। दीवारों पर कई लैण्ड स्केप और 
              पेंटिंग लगीं थीं । धुँधले होने के बाद भी जिनके रंग अभी इतने 
              निस्प्राण नहीं हुये थे कि आपकी दृष्टि को थोडी देर बाँधे न रख सके । 
              कुछ पारिवारिक फोटोग्राफ्स थे पर उन्हें देखकर केवल यह अन्दाजा लगाया 
              जा सकता था कि धब्बों में परिवर्तित आकृतियाँ रिप्ले बींन, उनकी माँ 
              , पिता या छोटे भाई बहन की हो सकतीं थीं । पर उस भूरी दीवार पर एक 
              फोटोग्राफ ऐसा भी था जिस पर एकदम से मेरी निगाहें ठहर गयीं । यद्यपि 
              कमरे में रोशनी इतनी कम हो गयी थी कि कुछ भी साफ साफ देख पाना मुमकिन 
              नहीं था पर यह फोटोग्राफ ऐसा था कि जालों और धूल से अटे होने के बाद 
              भी एक बार मेरी निगाह उस पर पडी तो अटक कर रह गयी । मैं कमरे में 
              मौजूद हिलती टाँगों वाले एक मात्र मेज को घसीट कर दीवार तक ले आया और 
              फिर डगमग काँपते उस मेज पर चढकर थोडी मुश्किल से ही सही पर तस्वीर 
              उतार ली । उतार क्या ली मेरे थोडे बहुत खींचने से वह कील सहित उखड कर 
              मेरे हाथ में आ गयी और मैं गिरते गिरते बचा ।  अन्दर कमरे में अब इतनी रोशनी नहीं बची थी कि फ्रेम में जडी 
              तस्वीर साफ दिखायी दे इसलिये मैं उसे लेकर बाहर निकल आया । रूमाल से 
              थोडा रगडने से साफ हो गया कि यह कोई फोटोग्राफ था जिसे एनलार्ज किया 
              गया था । नीचे फोटो ग्राफर का नाम था और एक तारीख लिखी थी । मैंने 
              माचिस की तीली जलायी और जब तक लौ मेरी त्वचा को जलाने नहीं लगी तब 
              फोटो ग्राफर का नाम पढने की कोशिश की । दूसरे प्रयास में हाथ से लिखे 
              इस नाम को पढने में मैं सफल हो गया । दूसरी तीली बुझने के पहले मैं 
              उत्तेजना से भर गया । फोटोग्राफर का नाम रस्ट था जिसने नीचे अपने 
              हस्ताक्षर किये थे । रस्ट का नाम पढते हुये मुझे अन्दर से बेचैनी 
              महसूस हुयी । यह तो वही फोटोग्राफर था जिसे एलन को उत्तेजित फौजियों 
              की भीड से बचाने के लिये कोतवाल ने एलन की कमीज पहनाकर और उसकी पीठ 
              भीड की तरफ करके बैठाया था । रस्ट रिप्ले बीन को कैसे जानता था ? 
              मुझे सब कुछ बडा रहस्यमय लगा । फोटोग्राफ पर अपने हस्ताक्षर के नीचे 
              रस्ट ने जो तारीख डाली थी वह छ: वर्ष पुरानी थी । यानि मरने के कुछ 
              ही दिन पहले खींची गयी थी यह फोटो !  यह फोटो सम्भवत: रिप्ले बीन के मरने के कुछ साल पहले उतारी गयी और 
              एनलार्ज कराकर उन्हें भेंट की गयी थी ।  रोशनी खत्म हो गयी थी पर अँधेरे में बालकनी में बैठे मैं माचिस की 
              तीलियाँ तब तक फूँकता रहा जब तक पूरी माचिस खाली नहीं हो गयी । मैं 
              एक तीली जलाता और तस्वीर पर अलग अलग कोण से रोशनी फेंकता रहा । जब 
              तीली जलते जलते ऊँगलियाँ सुलगने लगतीं तब मैं उसी से दूसरी तीली जला 
              लेता । यह एक उम्रदराज बूढी औरत का चित्र था जो एक कुशल फोटोग्राफर 
              के कैमरे ने खींचा था और जिससे उसके चेहरे की एक एक रेखा इतनी सजीव 
              उभरी थी कि आप आँख मूँदकर उसे साक्षात अनुभव कर सकते थे । मैMने 
              आखिरी तीली बुझने के बाद अपनी आँख बन्द की । "अरे कमबख्त बाहर कब तक 
              बैठा रहेगा । ठण्ड लग जाएेगी । " मैंने अचकचा कर आँखें खोलीं । अन्दर 
              कमरे में लाइट जल रही थी । रिप्ले बीन आ गयी क्या ?  मैं झपटते हुये अन्दर गया । सचमुच रिप्ले बीन का भूत उनकी 
              पसन्दीदा जगह राकिंग चेयर पर बैठकर झूल रहा था । रोशनी हो जाने से 
              कमरे साफ दिखायी दे रहा था । सारी दीवारें जालों से अटी पडीं थीं। 
              आलमारियों, तस्वीरों और टूटे फूटे फर्नीचरों पर जाले फैले हुये थे और 
              हर जगह धूल की मोटी पर्तें जमी हुयीं थीं ।  "मैं कमरे की सफायी कर दूँ मैडम ?" मैंने भूत की खुशामद करते हुये 
              कहा । "रहने दे। । । । । । । । । रहने दे। । । । । । । । एक बार भूत 
              बन जाने के बाद इन सब चीजों का कोई मतलब नहीं रह जाता। " उसने कुछ 
              दार्शनिक अन्दाज से कहा । "अपने बैठने के लिये कोई जगह साफ कर ले । 
              जिन्दा आदमी के लिये हजार लफडे होतें हैं । " भूत हँसा तो मैंने भी 
              उसे खुश करने के लिये दाँत निपोर दिये । तीन पाये के पलंग पर बैठने 
              के इरादे से मैंने जैसे ही अपनी रूमाल से उसे झाडने की कोशिश की भूत 
              चीखा - "अरे नालायक वहाँ नहीं । मेरी पलंग पर कोई नहीं बैठता । इसी 
              बात पर नौशाद ने मुझसे कितनी डाँट खायी थी । उधर उस स्टूल को खींच ले 
              । " मुझे बाद में पता चला कि नौशाद उसके नौकर का नाम था जो रिप्ले 
              बीन से दो चार बरस ही छोटा था और अंतिम बीसियों साल उनकी खिदमत में 
              रहा था । मैंने स्टूल खींचा , झाडा पोंछा और उस पर बैठ गया । "मुझे 
              पता है कि तुम मुझे क्यों ढूँढ रहे थे ?"  मैं चुप रहा । भूत को क्या नहीं पता होता ?  "आदमी था बहुत बदमाश । भला बताओ अपने दोस्त को कोई कैसे मार सकता 
              है ? तुमने जेम्स की कब्र देखी है ? उस पर क्या लिखा है ?" मैं उसके 
              इस प्रश्न पर भी खामोश रहा । मैं अभी तक जेम्स की कब्र देखने नहीं जा 
              पाया था । मुझे खुद पर गुस्सा आया कि अभी तक यह बात मेरे दिमाग में 
              आयी क्यों नहीं ? "कैमल बैक रोड से गन हिल की तरफ जाओ तो ढलानों पर 
              तुम्हें योरोपियन सिमेट्री मिलेगी । कमबख्त पहाडी इसे गोरा 
              कब्रिस्तान कहने लगें हैं । पहले तो सिर्फ योरोपियन दफनायें जाते थे 
              वहाँ । "  भूत न जाने कितने कालों के बीच दफन किया गया है ।  "वहीं तुम्हें जेम्स की कब्र मिलेगी जिसकी कब्र पर दर्ज है - 
              मर्डरड बाई द हैंड दैट ही बीफ्रेंडेड ! अँग्रेजी समझते हो ?"  मैंने हाँ में सर हिलाया । दोस्त हाथों से कत्ल हुआ । "क्या एलन 
              सचमुच कातिल था ?"  शायद मेरा प्रश्न कुछ जल्दी पूछ लिया गया था - भूत उसके लिये 
              तैयार नहीं था । सवाल सुनते ही वह चुप हो गया । मैं थोडी देर तक चुप 
              चाप बैठा उसके जवाब का इंतजार करता रहा । उसने मुँह लटका लिया था और 
              बोलने के लिये जरा भी उत्सुक नजर नहीं आ रहा था । काफी देर तक खामोशी 
              छायी रही फिर हौले से उसने कहा - "पता नहीं हत्या उसने की थी या नहीं 
              पर सारा मसूरी तो यही मानता था । दूसरे दिन जब देहरादून से पुलिस 
              वाले उसे लेकर वापस जेम्स की दूकान पर लाये तो कितनी भीड थी आस पास ! 
              अगर पुलिस ने होशियारी न दिखायी होती तो लोग उसे पीट पीट कर मार 
              डालते । तुमने उन दिनों के मसूरी के अखबार पढे होते । कितने नाराज थे 
              मसूरी के लोग ! यह भी कोई बात हुयी कि चन्द सिक्कों के लिये अपने 
              दोस्त को कत्ल कर दे कोई ! " "तुम्हें क्या लगता है, जेम्स की हत्या 
              एलन ने ही की थी ?" इस बार का दुस्साहस मुझे मँहगा पडा । भूत ने 
              गन्दा सा मुँह बना कर मुझे देखा और फिर जो खामोश हुआ तो फिर उसकी 
              खामोशी नहीं टूटी तो अंत तक नहीं टूटी । मैं कब तक इंतजार करता ! रात 
              घिर आयी थी और ठण्ड भी बढने लगी थी । मुझे होटल जाकर सामान भी लाना 
              था । मैंने उसे खामोश राकिंग चेयर पर झूलते हुये छोडा , बाहर आकर 
              दरवाजे में ताला लगाया और नीचे उतर आया । गेट के बाहर निकलकर ऊपर 
              देखा तो कमरे की लाइट आफ थी । शायद मेरे जाते ही भूत भी वहाँ से चला 
              गया था । होटल से दूसरे दिन सामान लेकर मैं उस मकान में आ गया । जब 
              मैं कुली की पीठ पर सामान लदवाये वहाँ पहुँचा तब एक अजूबे की तरह 
              लोगों ने मुझे घेर लिया । कल रात मेरे जाने के बाद आस पास के लोगों 
              ने मान लिया था कि मैं भाग गया हूँ इसलिये स्वाभाविक था कि मेरे लौट 
              आने पर उन्हें उत्सुकता हुयी । वे मुझसे तमाम चीजें पूछना चाहते थे 
              लेकिन मेरी दिलचस्पी उनसे बात करने में एकदम नहीं थी । कुली स्थानीय 
              था इसलिये इस भुतहे मकान के बारे में जानता था । उसने भी सामान गेट 
              के बाहर पटका और अपनी मजूरी लेकर चलता बना । सामान बहुत था भी नहीं 
              -एक अटैची और एक बिस्तरबन्द । मैंने खुद ही ढोकर उन्हें ऊपर पहुँचा 
              दिया।  नीचे वाले किरायेदारों के दरवाजे खिडकियाँ कल की तरह आज भी बन्द 
              थे । शायद उन्हें डर था को खुले रास्तों से ऊपर का भूत उनके घर में 
              प्रवेश कर सकता था इसलिये वे घर हर समय बन्द रखते थे । कमरे का ताला 
              खोलकर मैं अन्दर घुसा तो कल के मुकाबले सीलन की गन्ध कम थी । मैंने 
              खिडकियाँ खोल दीं । मेज पर अपनी अटैची रखी और एक कपडा लेकर जितना कुछ 
              झाड पोंछ सकता था , किया । पलंग झाडकर उस पर अपना बिस्तर बिछाने का 
              इरादा तो मैंने शुरू में ही छोड दिया था । रिप्ले बीन की पलंग पर 
              सोते देख कहीं भूत और नाराज न हो जाए । मैंने जमीन पर ही अपना बिस्तर 
              बिछा दिया । होटल से यहाँ तक आने की थकान ने मजबूर किया कि थोडी देर 
              पीठ सीधी कर लूँ पर जब लेटा तो पता नहीं कब गहरी नींद आ गयी । उठा तो 
              चारों तरफ अँधेरा था । खुली खिडकियों और दरवाजे से ठण्ड अन्दर आ रही 
              थी । आँख खुलते ही पहली चीज जो याद आयी वह थी कमरे में बिजली का गुल 
              होना । दिन भर सोते रह जाने से मैं किसी मिस्त्री को बुला कर चेक 
              नहीं करा सका कि बिजली क्यों नहीं आ रही? मकान मालिक के अनुसार तो घर 
              में एक मीटर था और बिजली का बिल बाकी नहीं था । कोई न कोई अन्दरूनी 
              फाल्ट थी । पर क्या पता बुलाने पर कोई मिस्त्री ऊपर आता भी !" मैं 
              काफी देर तक यह सोचकर पडा रहा कि भूत आ जाए और लाइट आन कर दे पर वह 
              नहीं आया । लगता है नाराज हो गया था ।  जोर की भूख लगी थी , देर तक लेटे रहना मुमकिन नहीं था । मैं उठा 
              और खाने की तलाश में बाहर निकल आया । इस बार मैंने दरवाजा बन्द करने 
              की जरूरत भी नहीं समझी । जिस घर में भूत रहतें हो वहाँ चोर-चाईं क्या 
              आयेंगे ?  मैं अपने नये ठिकाने के आस पास की किसी दूकान पर नहीं रूकना चाहता 
              था क्योंकि वहाँ लोगों से घिर जाने और तमाशा बन जाने के इमकानात थे 
              इसलिये बिना किसी से नजरें मिलाये एवं अपरिचित दिशा में तेज कदमों 
              में बढ चला । थोडा ही आगे चलने पर मुझे समझ आ गया कि मैं कैमल बैक 
              रोड पर आ गया हूँ । कैमल बैक रोड पहले भी मसूरी आने पर मेरा पसन्दीदा 
              सडक रहती थी । माल रोड की भीड-भाड से दूर यह आम तौर से रोमांटिक 
              जोडों या भीड से दूर रहना चाहने वाले सैलानियों के सैर के लिये प्रिय 
              जगह थी । मुझे गनहिल के इर्द गिर्द रेंगती यह पहाडी इसलिये भी प्रिय 
              थी कि इसके ढलान से लिपटी एक बडी सिमेट्री थी जिसमें फैली सफेद 
              संगमरमर की कब्रें बादलों से रहित चाँद रातों मेM एक अजीब सा रहस्य 
              लोक निर्मित करती थी और कैमल बैक रोड के कई घुमावदार मोडों से अलग 
              अलग कोण पर उन्हें देखना मुझे रोमांचित कर देता था । सिमेट्री मुझे 
              इसलिये भी आकर्षित करती थी कि उसमें मेरे सबसे प्रिय मित्र यानि भूत 
              अपने अंतिम रूपों में लेटे हुये थे । आज भी यही हुआ । मैंने कैमल बैक 
              रोड की शुरूआत में ही एक टी शॉप पर पाव रोटी खायी और चाय पी। पेट में 
              कुछ जाने पर मैं चैतन्य हुआ और कैमल बैक रोड पर मटर गश्ती करने निकल 
              पडा ।  कैमल बैक रोड के उस मोड पर पहुँचते ही जहाँ से ढलानों पर स्थित 
              सिमेट्री की पहली झलक मिली , मेरा दिल धडकने लगा । एक खास बिन्दु पर 
              जहाँ से सिमेट्री का विहंगम दृश्य दिखता था और लोहे की एक खाली बेंच 
              जैसे मेरा ही इंतजार कर रही थी , मैं बैठ गया । सामने की कब्रों में 
              कितने परिचित लेटे थे - कैप्टन यंग, रिप्ले बीन ,जेम्स, मिसेज सैमुअल 
              ,रस्ट और न जाने कौन कौन । इन सबने कितना साथ दिया है मेरा, कितनी 
              मित्रता निभाई है । मेरा मन कृतज्ञता से भीग गया ।  मैं एक टक संगमरमर के उस रहस्य लोक में अपने मित्रों के आशियाने 
              तलाशता रहा । कल के अनुभव से मन कुछ व्यथित सा था । मैंने कुछ ऐसी 
              गलती की थी जिसे मैं समझ नहीं पा रहा था पर जिससे भूत इतना नाराज हो 
              गया था कि आज दिन भर इंतजार करने के बाद भी नहीं आया । मेरी कहानी 
              बीच में ही छूट गयी । मुझे अपने मित्र कैप्टन यंग की याद बुरी तरह 
              सता रही थी । कहाँ होगा ? जरूर 3 गोरखा पलटन की लाइंस के पास किसी 
              पीपल या बड के पेड से लटका मटरगश्ती कर रहा होगा । मलिंगर हाउस में 
              अगली पूर्णिमा को आयेगा । उसने कहा था वह एक ऐसे भूत को जानता है 
              जिसे इस हत्या काण्ड के बारे में सब कुछ पता है और मुझसे उसे मिलवाने 
              का वायदा भी किया था । उस भूत ने कैप्टन यंग को तो कुछ नहीं बताया पर 
              उसे उम्मीद थी कि मैं उससे सच्चाई उगलवा लूँगा । मनुष्य की क्षमता पर 
              भूतों को भी यकीन होता है । मेरा अब तक का अनुभव यही बताता था कि भूत 
              वायदा निभातें हैं और मित्रों की मदद करतें हैं । कैप्टन भी करेगा पर 
              पन्द्रह दिन इंतजार करना तो बडा मुश्किल है । मेरा दुष्ट संपादक एक 
              स्टोरी के लिये मुझे एक महीने मालिकों के खर्चे पर मसूरी घूमते 
              पायेगा तो जल भुन कर राख हो जाएेगा । क्या किया जा सकता था ?  बैंच पर असहाय बैठा मैं कब्रिस्तान में फैली असंख्य कब्रों को 
              उदास निहारता रहा । अचानक अपने कन्धे पर किसी के हल्के स्पर्श का 
              आभास हुआ । मैंने चौंक कर देखा तो बेंच के दूसरे कोने पर मुस्कराता 
              हुआ कैप्टन यंग दिखायी पडा । मुसीबत में काम आने वाले इस दोस्त पर 
              इतना प्यार उमडा कि जी हुआ उसे चूम लूँ । मुझे पता था कि भूत इन सब 
              इंसानी चोंचलों से दूर रहतें हैं , अगर मैंने ऐसा कुछ किया तो हो 
              सकता है कि शरमा कर भूत भाग ही न जाए । इसलिये मैं सिर्फ कृतज्ञ 
              नजरों से उसे भिगोता रहा।  "जय गोरख । हुजूर कैसे आ गये ?"  मेरे आश्चर्य पर भूत खिलखिलाया - " तुम्हें उदास देखा तो चला आया 
              । मेरी पलटन तो दूर सियाचिन में है । कमबख्त हाड कँपाने वाली ठण्ड है 
              । मैं तो ऊनी कपडों के स्टोर में छिपा बैठा था । तुम मुँह लटकाये 
              बैठे थे इसलिये इधर आ गया। " मुझे उदास देख सकता है तो मेरी उदासी का 
              सबब भी जानता ही होगा , यह सोचकर मैं चुप रहा । पर लगा वह मेरे मुँह 
              से ही सुनना चाहता है । इसलिये मुझे विस्तार से बताना पडा । "अजीब 
              बात है । रिप्ले बीन से मैंने भी जब जब यह सवाल किया कि एलन हत्यारा 
              है या नहीं वह चुप हो जाती है । मुझे कोई जवाब नहीं देती । " "फिर 
              कैसे बात बनेगी ?" मैंने आजिजी से पूछा । "तुम्हें। कोशिश करते रहना 
              होगा । अब तो तुम्हें मेरे लिये भी कोशिश करना होगा । तुम नहीं जानते 
              कि मैं कितना व्याकुल हूँ यह जानने के लिये कि एलन हत्यारा था या 
              नहीं ? तुम्हीं जान सकते हो । तुम इंसान हो और मुझे पता है कि 
              इंसानों के लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है । " सुनकर मुझे हँसी आ गयी । 
              हम इंसान मानतें हैं कि भूतों के लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है जबकि 
              भूत हमारे बारे में यही सोचतें हैं । मैंने अपनी हँसी रोकते हुये 
              अपनी अगली समस्या उसके सामने रखी - "पर वह तो नाराज होकर चला गया । 
              आज पूरा दिन मैंने इंतजार किया पर आया ही नहीं । पता नहीं अब आयेगा 
              भी या नहीं ?" "आयेगा ----जरूर आयेगा-----, भूत इंसानों की तरह नहीं 
              होते । वे कोई बात गाँठ में बाँध कर नहीं रख लेते । वे दिल के साफ 
              होतें हैं । अगर नाराज हुआ भी होगा तो अब तक गुस्सा उतर गया होगा । 
              तुम घर चलो मैं भी थोडी देर में पहुँचता हूँ , तुम्हारे बुलाने से 
              नहीं आया तो मैं पकड कर ले आऊँगा । "  शाम की उदासी दूर हो गयी । मैंने झटपट अपने आशियाने की राह पकडी। 
              रास्ते में मैं खाना पैक करा लिया पर मोम बत्ती लेना भूल गया । घर के 
              पास पहुँच कर याद आया तो न चाहते हुये बगल की दूकान पर रुकना पडा। 
              जैसे ही मैंने मोमबत्ती माँगी। किसी और कार्य में व्यस्त दूकानदार 
              ने मेरी तरफ द्र्खा और चौंकते हुये कहा-- "कल तो आपने पूरी रात 
              अँधेरे में बितायी । आपको डर नहीं लगा ?"  "कल तो पूरी रात मेरे कमरे में रोशनी रही । बल्ब जलता रहा । " 
              दूकानदार ने अचकचा कर मुझे देखा । मैंने उसे ज्यादा बोलने का मौका 
              नहीं दिया तथा मोमबत्तियों का पैकट और पानी की दो बोतलें लेकर ऊपर 
              चला गया ।  मेरे दो दोस्त आने वाले थे । अन्दर से एक खास तरह की खुशी महसूस 
              कर रहा था मैं । मैंने एक कोने में मोमबत्ती जलाई , पानी की बोतल खोल 
              कर कमरे में ही हाथ धुला और जल्दी जल्दी साथ लाया खाना खत्म किया । 
              कमरे में सिर्फ दो कुर्सियाँ थीं । राकिंग चेयर तो मैडम के लिये हो 
              गयी , दूसरी कुर्सी पर बैठकर मैंने खाना खाया था ,उसी को कैप्टन यंग 
              के लिये छोड दूँगा । जिस स्टूल पर रखकर खाना खाया था उस पर मैं बैठ 
              जाऊँगा । अपने घर में भी मेहमानों के लिये इतनी व्यवस्थित तैयारियाँ 
              मैंने स्वयं नहीं कीं थीं। मेरी पत्नी देखती तो उसे विश्वास नहीं 
              होता कि मै भी इतने सलीके से ऐसा इंतजाम कर सकता हूँ ! स्टूल को 
              राकिंग चेयर के पास जमाकर अभी मैं हटा ही था कि मुझे उस पर बैठा 
              कैप्टन यंग दिखायी दे गया । लगता था कहीं बगल में खडा होकर इन्तजार 
              ही कर रहा था और मौका मिलते ही स्टूल पर बैठ गया । कमरे में बल्ब जल 
              गया था ।  "अरे यार , तुम इतना कम खाते हो ?" इसका मतलब वह मुझे खाते हुये 
              देख रहा था ।  मैंने झेंपते हुये कहा , "अरे नहीं कैप्टन साहब ! आज तो कुछ 
              ज्यादा ही खा लिया । " "भाई जवान आदमी हो इतने को ही ज्यादा कहोगे तो 
              कैसे चलेगा । मेरी पलटन के लडकों की खुराक देखना कभी -------," "आप 
              भी हुजूर----- फौजियों की तुलना पत्रकारों से करतें हैं ! हम तो कलम 
              के सिपाही हैं ---स्याही खातें हैं । " हम दोनों हँसे । "अभी तक 
              रिप्ले बीन नहीं आयीं ?" उसने बातचीत का रूख दूसरी तरफ मोडा । "पता 
              नहीं आयेंगी भी ?"मेरे मन की शंका बाहर आ गयी।  "आयेंगी कैसे नहीं ?" वह खामोश हो गया । लगता था उसने मेरे प्रश्न 
              को चुनौती की तरह लिया था । आँखे बन्द कर चुपचाप बैठ गया । मैं डरा 
              के कहीं मैंने उसे अपनी मूर्खता से इस भूत को भी तो नाराज नहीं कर 
              दिया था।  यह तो मुझे बाद में पता चला जब मैडम रिप्ले बीन का भूत राकिंग 
              चेयर पर आकर बैठ गया कि मौन भी संवाद का माध्यम हो सकता है । खास तौर 
              से भूतों के बीच तो मौन ही ऐसा अचूक माध्यम था जिसके द्वारा कैप्टन 
              यंग का सन्देश, आग्रह, चिरौरी, नाराजगी, धमकी -----और न जाने किन किन 
              भावनाओं से भरा हुआ रिप्ले बीन तक पहुँचा था।  मैडम रिप्ले बीन के भूत को देखकर इतना तो साफ लग रहा था कि वह 
              नाराज था । नाराजगी उसके चेहरे पर भी थी और जिस तेजी से वह राकिंग 
              चेयर पर झूल रहा था उससे भी स्पष्ट थी। मैं भले डरा पर कैप्टन यंग पर 
              रिप्ले बीन की नाराजगी का कोई असर नहीं लग रहा था। वह चिढाने जैसे 
              भाव से मुस्कुरा रहा था जैसे कोई बडा किसी बच्चे के नाराज होने पर 
              उसे छेडता है । कैप्ट्न यंग था भी तो उससे सत्तर पचहत्तर साल बडा ! 
              "अब गुस्सा थूक दो मैडम और इस बेचारे खोजी पत्रकार की कुछ मदद करो । 
              " "मदद क्या करूँ ,खाक ? जिस मामले के बारे में पूछ रहा है उसके बारे 
              में मुझे कुछ नहीं पता । "क्यों तुम तो उन दिनों मसूरी में ही थी 
              !अपने शानदार बँगले में मुझे ले भी गयी थी । " "थी जरूर पर मुझे उतना 
              ही मालूम है जो उन दिनों मसूरी के अखबारों में छपता था । मसूरी में 
              हर कोई जानता था कि एलन हत्यारा है । कत्ल क्यों हुआ यह किसी को पता 
              नहीं था । कम से कम मुझे तो नहीं ही पता था। "  "देखो रिप्ले तुम्हारे सामने जो बैठा है वह एक इंसान है और ऊपर से 
              खोजी पत्रकार भी। कितना डेडली काम्बिनेशन है । हम तुम भूत हैं - हमें 
              यह तो पता ही है कि इंसान क्या कुछ नहीं कर सकता ? इस मामले में तो 
              मेरी भी दिलचस्पी है । मैं भी जानना चाहता हूँ । इस पत्रकार से मिलने 
              के बाद तो मुझे भी उम्मीद बँधी है कि शायद मैं जान सकूँ कि मेरी पलटन 
              का सिपाही सचमुच कातिल था या उसे बेगुनाह लटका दिया गया । "  काफी देर मान मनव्वल का दौर चला । रिप्ले बीन मना करती रही कि 
              उन्हें नहीं पता कि कत्ल किसने किया था । उन्हे मसूरी के दूसरों 
              लोगों की इस जानकारी पर सन्देह करने का कोई कारण नजर नहीं आता कि 
              कातिल एलन ही था वही था जो जेम्स के साथ आखिरी बार देखा गया था । 
              उसके बाद जेम्स से मिलने कोई दूसरा आदमी वहाँ नहीं पहुँचा था ।  पुलिस की सारी तफतीश उसी को दोषी पाती है, पूरी मसूरी में कोई ऐसा 
              नहीं था जिससे जेम्स की दुश्मनी रही हो । फिर कौन मारेगा जेम्स को ? 
              एलन ने चन्द सिक्कों के लिये अपनए दोस्त को मार डाला। बार बार ऐसे 
              रिप्ले बीन मुँह बिचका कर उसे कोसती । पर कैप्टन यंग भी किसी ऐसे 
              सेना नायक की तरह अडा रहा जिसे एक टास्क मिला है और जो उसे किसी भी 
              कीमत पर पूरा करना चाहता है । अंत में रिप्ले बीन को झुकना ही पडा। 
              शर्त सिर्फ इतनी रखी उसने कि मैं ऊलजुलूल सवाल नहीं पूछूँगा । वह 
              जितना बतायेगी चुपचाप सुनूँगा । उसके बारे में जितना मैंने उसके मकान 
              मालिक और आस पडोस के दूकानदारों से सुना था उससे उसकी पूरी छवि एक 
              चिडचिडी और तुनक मिजाज बुढिया की बनती थी । वह जीवित मिलती तब भी 
              मेरी क्या मजाल थी कि उससे ज्यादा सवाक जवाब करता अब तो खैर भूत बन 
              जाने के बाद इसका सवाल ही नहीं उठता था । इसके बाद रिले यात्रा शुरू 
              हुयी। कैप्टन यंग ने कथा का सूत्र रिप्ले बीन को थमाया और फुर्र से 
              उड गया। मुझे अफसोस हुआ कि मैं उसे ढंग से धन्यवाद भी नहीं दे पाया। 
              "देखो तुम मुझसे बहुत उम्मीद मत करना। " जैसे ही रिप्ले बीन के भूत 
              ने बोलना शुरू किया मेरा चेहरा उतर गया। कैप्टन यंग के जाते ही मुझे 
              नि:शस्त्र पाकर अपने रंग में आ रही है बुढिया । पर उसकी अगली बात से 
              कुछ ढाढस बँधा - "सामने आलमारी में जो बंडल दिख रहा है उसमें कुछ खत 
              हैं जो एलन ने लिखे थे । पिछले सौ सालों में किसी ने इन्हें नहीं पढा 
              था । इन्हें पढ लो फिर आगे बात करतें हैं । "  मैंने अचकचाकर देखा तो सिर्फ राकिंग चेयर हिल रही थी । उस पर से 
              भूत गायब था । कमरे की रोशनी गुल हो गयी थी और अँधेरे में राकिंग 
              चेयर की हिलती काया का आभास हो रहा था । मैंने माचिस की तीली जलाकर 
              पहले तो वह मोमबत्ती तलाशी जो भूतों के आने पर बुझ गयी थी और फिर उसे 
              हाथ में लेकर सामने वाली आलमारी की तरफ लपका । ज्यादा ढूँढना नहीं 
              पडा । आलमारी के ऊपरी खाने में ही पुराने और लगभग चिथडे से कपडे के 
              बस्ते में लिपटा खतों का एक बंडल पडा था । उसे उतार कर मैं कमरे के 
              बाहर बालकनी में ले आया । कुछ रोशनी बाहर भी आ रही थी और कुछ 
              मोमबत्ती की लौ से उपजी थी जिसमें मैंने सावधानी से बस्ते को खोला । 
              उसका कपडा जो पूरी तरह से पीला पड गया था छूते ही फट फट जा रहा था। 
              अन्दर नीम अँधेरे में जो कुछ मैंने देखा उसे पढने की व्यग्रता ने 
              कुझे इतना भी नहीं रुकने दिया कि मैं कमरे में ताला लगा दूँ । मैं 
              बंडल को लेकर सीधा अपने होटल की तरफ भागा। उम्मीद थी कि मुझे वहाँ 
              फिर से कमरा मिल जाएेगा ।  |