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प्रेम की भूतकथा

विभूति नारायण राय

 

 भाग-9

उपन्यास का अनुक्रम भाग-1 भाग-2 भाग-3 भाग-4 भाग-5 भाग-6 भाग-7 भाग-8 भाग-9
क्या भूत भी रोतें हैं ?

यह कोई मुश्किल सवाल नहीं है ? कम से कम इस भूत से दोस्ती करने के पहले तक तो मैं यही समझता था । रोना धोना तो मनुष्यों की कमजोरी है । एक बार भूत योनि में पहुँचते ही वे इस दुर्बलता से मुक्त हो जातें हैं । मेरा अनुभव था कि भूत गजब के किस्सागो होतें हैं - किसी मँजे सधे कथाकार की तरह वे बिना भावुक हुये बडे उतार चढाव वाली कथा सुना सकतें हैं । अगर भावुक हुये तो फिर गये काम से । मनुष्य हो जाएेंगे या कम से कम भूत तो नहीं ही रहेंगे । भूतों के बारे में मेरी समझ अपनी नानी से सुनी कथाओं से बनी थी जिनके अनुसार चुडैलों के पाँव उलटे होतें हैं और उनकी आँखों में पानी नहीं होता।

इस भूत ने मेरी इस धारणा को उलट पुलट दिया । इस भूत ने मेरी कई धारणाओं को उलट पुलट दिया था मसलन मेरा मानना था कि भूत सब कुछ जानतें हैं या चाहें तो सब कुछ जान सकतें हैं ।

मेरा अनुभव कहता था कि भूत झूठ नहीं बोलते । मनुष्यों से भिन्न उन्हें झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं है । वे कौन से रागद्वेष के चक्कर में पडें हैं कि झूठ बोलेंगे । इस भूत ने तो मेरी सारी समझ ही उलट पुलट कर रख दी थी । ऐसा तो नहीं कहूँगा कि यह झूठ बोलता है पर इसे क्या कहें कि कई बार सच छिपाने के लिये यह मेरा सवाल टाल जाता या फिर ऐसा गोलमोल जवाब देता कि सच झूठ की विभाजक रेखा धुँधली पड जाती ।

जब मेरा यह मित्र भूत रोया तो सच मानिये मैं गडबडा गया । किसी भूत को रोते देखने के लिये मैं प्रस्तुत नहीं था । मैं तो यह मानने के लिये ही राजी नहीं होता कि कोई भूत रो भी सकता है अगर मैं खुद इसे रोते नहीं देख लेता ।

मैंने भूत से सिर्फ इतना पूछा-

"तुम्हें क्या लगता है कि एलन ने सचमुच हत्या की थी ?"

"मुझे नहीं मालूम। "

भूत की आवाज कुछ लडखडाती सी लगी ।

"तुम्हें मालूम है । तुम भूत हो तुम्हें सब कुछ मालूम है । जेम्स को किसने मारा ?"

मेरी आवाज कुछ सख्त हुयी ।

"मैं नहीं जानती। "

मुझे लगा इस बार उसकी आवाज कुछ और कमजोर हुयी है ।

मैंने मौके का फायदा उठाया । मुझे लगा उस पर भावनात्मक दबाव बनाया जा सकता है । मैंने आजिजी से कहा-

"बता दो मेरे दोस्त भूत । तुम जानती हो कि मेरे लिये यह कितना जरूरी है । पहले तो मैं सिर्फ एक ऐसी कहानी पर काम कर रहा था जिसमें मेरे अखबार को दिलचस्पी हो सकती थी । इस स्टोरी से पत्रकारिता के मेरे करियर को ब्रेक मिलता । पर अब तो एक बडे शिलाखण्ड की तरह यह पूरा प्रसंग मेरी आत्मा पर सवार हो गया है । बिना सच जाने मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी । मुझे बताओ न किसने मारा था जेम्स को .... । ?"

मैं गिडगिडाने लगा । मैंने अपनी दोस्ती का वास्ता दिया , भूतों की साख की दुहायी दी और अंत में वह किया जो अपने किसी मित्र के लिये नहीं कर सकता था । मैंने अपनी आत्मा के एक एक जख्म उसे दिखाये। ये सारे जख्म मुझे इस दर्दनाक कथा ने दिये थे । मेरी आत्मा पर ये जख्म कैसे टँके? मैं तो एक मात्र एक श्रोता था इस पूरे आख्यान में । इसे सुनते सुनते कब मैं इसका एक हिस्सा बन गया- मुझे पता भी नहीं चला । जब तक मुझे हत्यारे का पता नहीं चलेगा मेरी मुक्ति नहीं हो सकेगी । मेरी ही क्यों इस त्रासदी के किसी पात्र की मुक्ति हो पायेगी क्या ?

मुझे जेम्स याद आया । कान से जबडे तक तेज धार वाले टिन से कटा उसका चेहरा .... .... । , गले में बने सुराख से बोलने की कोशिश करता हुआ.... ....

अचानक एक रात माल पर मुझसे उसकी मुलाकात हो गयी । इस बीच मेरी दिनचर्या हो गयी थी शाम होते होते रिप्ले बीन के भूत से मिलने किराये वाले मकान में पहुँचना, जल्दी जल्दी रास्ते मे खरीदे हुये खाने को निगलना और फिर रिप्ले बीन का इंतजार करना । बुढिया कभी तो फौरन आ जाती और कई बार इंतजार कराती । रुक रुक कर कथा के जितने अंश वह मुझे दिखाती, सुनाती या पढाती उन्हें देख सुन या पढ कर वापस आपने होटल लौटना । उस किराये के मकान में न तो बिजली थी और न ही सोने का माकूल इंतजाम इसलिये रोज ही मैं वापस आ जाता । ऐसी ही एक रात जो जरा ज्यादा ही ढल गयी थी और जिसमें कोहरा ह्ल्की हल्की बूँदों में तब्दील होकर बार बार चेहरे को गीला कर रहा था, अपने दोनों हाथ पैंट की जेब में डाले मैं तेज रफ्तार से चलते हुये ठण्ड का मुकाबला करने की कोशिश कर रहा था। सडकें सुनसान थीं और होटल के लिये सडक मुडने ही वाली थी कि तभी वह मुझे दिखायी दिया।

हुआ कुछ ऐसा कि उस दिन रिप्लेबीन ने मुझे विस्तार से मिसेज सैमुअल के कैमिस्ट शापके बारे में बताया था । उस अभागे जेम्स के बारे में जिसकी कब्र पर खुदा हुआ था कि अपने दोस्त दोस्त के हाथों मारा गया, सुनते हुये मेरा मन भीग गया था। बात बात पर हँसता था जेम्स। छावनी में मशहूर था कि जब जेम्स और एलन माल पर ठहाके लगाते थे तो लैण्डोर डिपो तक उनकी गूँज सुनायी देती थी । कैसे कैसे सपने देखे थे मिसेज सैमुअल नें। बिना बताये पूरी मसूरी जानती थी कि जल्दी ही जेम्स उनकी ऊँगली में अँगूठी पहनाने वाला है । एक एक पैसा जोडकर जेम्स सपने बुन रहा था । मिसेज सैमुअल मसूरी की सम्पत्ति बेच देगी और जेम्स की बचत के साथ मिलाकर इतना हो जाएेगा कि वे वापस विलायत चले जाएेंगे, देहात में कही फार्म हाउस बनाकर आराम से जिन्दगी बितायेंगे । पर जो कुछ हुआ उसकी उम्मीद किसे थी ? हत्या के बाद बरसों तक मसूरी में सिर्फ इसी हत्या की चर्चा होती रही । मिसेज सैमुअल का तो रो रोकर बुरा हाल था । मसूरी के अखबारों -------------------- में कितने सम्पादकीय लिखे गये , दर्जनों पाठकों के पत्र छपे और एलन को फाँसी की सजा सुनाये जाने के बाद तमाम बहसें हुयीं ,ज्यादातर लोगों की राय थी कि ऐसे मित्रदोही के लिये फाँसी की सजा बहुत कम थी । उसे तो टुकडे टुकडे कर चील कौओं को खिला देना चाहिये था।

रिप्ले बीन जब यह कथा सुना रहीं थीं तो मेरे मन में भी अवसाद के साथ साथ गुस्सा भरा हुआ था । जब वह दिखा तब तक गुस्सा कम नहीं हुआ था । दरअस्ल मैं आज जब रिप्ले बीन से विदा लेकर रवाना हुआ था, मेरे मन में कहीं न कहीं एक उत्सुकता थी कि उस जगह को ढूँढ निकालूँ , जहाँ कैमिस्ट की वह दूकान थी जिस पर जेम्स काम करता था और जिसके सामने मसूरी में पहला बिजली का खम्बा गाडा गया था । कथा से उपजा जेम्स का दुख और एलन के लिये गुस्सा मन में लिये मैं रिप्ले बीन के विवरण के कैमिस्ट शाप की जगह तलाशने की कोशिश कर ही रहा था कि बिजली के एक खम्बे के नीचे खडा हुआ जेम्स मुझे दिख गया ।

मैंने चौंक कर ध्यान से खम्बे को देखा । अरे यह तो सौ साल से भी ज्यादा पुराना सागौन के मजबूत तने वाला खम्बा था जो अपने आस पास के कंक्रीट के खम्बों से एकदम अलग दिखायी दे रहा था । अरे ! मैं रोज इधर से गुजरता हूँ पर मेरा ध्यान इधर क्यों नहीं गया कि मसूरी नगर पालिका ने इतिहास को सुरक्षित रखने के लिये सागौन की पुरानी पकी लकडी वाले खम्बे को सुरक्षित रखा था । कोहरे में बूँद बूँद टपकती रोशनी में जेम्स खडा था । चेहरे पर पर अभी भी वही भाव था जो अपने हत्यारे को सर पर शीशे की बोतल से प्रहार करने को उद्यत देखकर आया होगा । वही अविश्वास, आश्चर्य और भय का भाव जो किसी मित्रहंता हत्यारे को देखकर एक खुशमिजाज निश्छल व्यक्ति के चेहरे पर आ सकता था बांयें कान से जबडे तक को चीरता हुआ और दाहिने कान के पास तक पहुँचा हुआ घाव भी बहुत स्पष्ट नजर आ रहा था । खून का रिसना बन्द हो जाने के कारण घाव अपनी गहराई के साथ ध्यान खींच रहा था । केवल वह सुराख जो उसकी ठोडी के नीचे और गर्दन के मध्य में था, मुझे तब दिखायी दिया जब उसने बोलने की कोशिश की और घरघराहट की अस्पष्ट सी ध्वनि मुझे सुनायी दी । लगता था वह कुछ कहना चाहता था । कटे फटे चेहरे पर दर्द की लकीरें थीं और बोलने की उसकी हर कोशिश के असफल होने पर ये लकीरें पछाड खा खा कर उसकी बची खुची त्वचा पर गिर रहीं थीं और उसके साथ साथ मुझे भी झकझोर रहीं थीं।

क्या था जो वह बार मुझसे कहना चाह रहा था? उस दगाबाज नराधम मित्र का नाम मुझे बताना चाह रहा था या कुछ और? हर बार उसके गले के सूराख से गों---गों--- की आवाज निकलती और कुछ न कह पाने से व्याकुल उसकी असहाय कातर निगाहें मुझे मुझ्र बेध देतीं ।

मैं आपसे सच सच कह रहा हूँ कि मैं अपने जीवन में पहली बार किसी भूत से भागा । क्या यह डर था? या वेदना की उस पराकाष्ठा से भागने का मेरा प्रयास जिसे झेल पाना मुझे एकदम असंभव सा लगा । मैं जब होटल पहुँचा तब भी क्षत विक्षत जेम्स अपने कटे गले से गों--- गों--- करता मेरा पीछा कर रहा था ।

शायद तभी से जेम्स मेरी आत्मा पर जख्म बन कर टिक गया था और बिना हत्यारे का पता लगाये मुक्ति संभंव नहीं थी- न उसकी दलील का असर नहीं पड रहा था । वह कुछ नहीं बताता । हाँ यह जरूर होता है कि वह कुछ और दृश्य चित्र मुझे दिखाने लगता है ।

फादर कैमिलस और कसाई कल्लू मेहतर के बीच का संवाद ! कितना मुश्किल था कल्लू का प्रश्न ,

"फादर आपको लगता है कि साहब कतल किये हन ?"

फादर कैमिलस चुप्पी साधे हुयें हैं । काश उनका मन भी कल्लू की तरह निर्मल और पारदर्शी होता ! कल्लू स्वामिभक्त है । उसके अन्दर शंका है पर कल सुबह चार बजे एलन को वह फांसी पर चढायेगा । जिस सरकार का नमक पिछली दो पीढियों से उसका परिवार खा रहा है उसके हुक्म का उल्लंघन वह सोच भी नहीं सकता । आंखें मूँदे फादर देखते हैं- पीछे बंधे हुये दोनो हाथों और आँखों पर काली पट्टी बांधे फांसी के तख्ते पर एलन खडा है , उसके गले में फंदा डालते हुये कल्लू एक बार ठिठकता है पर रस्सी खींचते समय उसके हाथ फिर से जल्लाद बन जातें हैं- सधे हुये और तटस्थ। खटाक की आवाज होती है और एलन के पैरों के नीचे का पटरा हट जाता है । उसका शरीर हवा में झूलने लगता है ।

कैसे सिर्फ एक मुलाकात से कल्लू के मन में यह शंका उत्पन्न हो गयी ? फादर कैमिलस ने तो तीन लम्बी दोपहरियाँ एलन की कोठरी में उससे संवाद करते गुजारीं हैं, फिर क्यों नहीं उनका मन स्वीकार कर पाता कि एलन पूरी तरह निर्दोष है ?या वे भी मानतें हैं कि एक बेगुनाह आदमी फाँसी पर चढाया जा रहा है । पर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक अंग्रेज को अंग्रेज जज द्वारा मृत्युदण्ड दे दिया जाए? वह भी जब हुकूमत भी अंग्रेजों की हो ! फादर कैमिलस गहरे ऊहापोह में हैं ।

यहाँ तक कि जब नैनी पुल पर इक्के से गुजरते हुये वे अपनी डायरी में अंकित एलन द्वारा कल्लू को दिया पता लिखा पृष्ठ चिंदियाँ चिंदियाँ कर नीचे बह रही बेगवान यमुना की धारा में डालते चले जातें हैं तब भी यह द्वन्द उनके मन मस्तिष्क पर छाया हुआ है । वे क्यों नहीं एलन को निर्दोष मान पाते ? या क्या वे सचमुच उसे हत्यारा मानतें हैं ?

मैं भूत से सिर्फ इतना जानने की कोशिश करता हूँ कि आखिर किसका पता था जिसे चिंदियाँ चिंदियाँ उडा कर फादर कैमिलस आश्वस्त होना चाहते थे कि उसका पता दुनियाँ में किसी को न लगे ? मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि कौन है वह जिस तक मरने के पहले एलन यह सन्देश भेजना चाहता था - नो रिग्रेट्स माय लव - मरते हुये भी जिसे आश्वस्त करना चाहता था एलन कि कोई अफसोस नहीं है मेरे प्राण?

पर भूत ने कितनी आसानी से मेरी जिज्ञासा को खारिज कर दिया, "मुझे पता नहीं । "

इसी तरह का उत्तर उसने दूसरे दृश्य चित्र के बाद भी दिया ।

राजपुर से सात लोगों का एक काफिला टटुओं पर चला आ रहा है । पतली पगडंडी , दाहिने तरफ ऊँची ऊँची पहाडियाँ और बाँयें वेगवान पहाडी नदी की सर्पीली धारा । तीन आगे और तीन पीछे चल रहे सवारों के बीच चल रहा है एलन ! पीठ पर एक फौजी पिट्ठू है जिसमें उसकी जरूरी रोजमर्रा के सामानों के साथ कुछ अँग्रेजी में लिखे खत हैं । सौभाग्य से कोतवाल को अँग्रेजी नहीं आती और कप्तान के सामने जो सामान पेश किये गये थे उनमें यह पिट्ठू नहीं था । इस पर कोतवाल की नजर सराय में उसके कमरे की तलाशी लेते समय पडी थी । सरसरी तौर पर पिट्ठू को उलट पुलट कर देखने के बाद उसने एलन को चलते समय इसे अपने पीठ पर लादने की इजाजत दे दी थी । इस समय एलन के दिमाग में जो अन्धड चल रहा है मुख्यत: इसी पिट्ठू को लेकर है ।

थोडी दूर आगे चलकर जहाँ बायीं ओर की ढलान इस लायक हुयी कि वहाँ से सावधानी से उतरते हुये नदी तक पहुँचा जा सके एलन ने शौच की इच्छा जाहिर की । आगे पीछे चलने वाले सवार भी थक चुके थे और उन्हें भी थोडे आराम की जरूरत महसूस होने लगी थी । कोतवाल ने दोनों गोरे सवारों से विचार विमर्श किया और फिर उसके इशारे पर सभी अपने अपने खच्चरों से उतर गये ।

खच्चरों की रस्सी थामे सारे सवार सावधानी से नदी की तलहटी में उतरने लगे । कोतवाल ने कभी आँखों तो कभी हाथों के इशारे से अपने साथी पुलिस कर्मियों को इस तरह से फैला दिया कि वे एलन के दांयें बांयें लगभग पचास गज का घेरा बनाकर ऐसे स्थानों पर जम गये कि अगर एलन भागने की सोचता भी तो उनकी गिरफ्त से भागना संभव न होता । सामने इतनी तेज धारा से पहाडी नदी बह रही थी कि नदी में कूदने की बात सिर्फ आत्महत्या का इरादा रखने वाला ही सोच सकता था ।

कोतवाल को नहीं पता था कि एलन के दिमाग में जो कुछ उमड घुमड रहा था उसके लिये इसी तेज धारा की तो जरूरत थी ।

एलन के बांयें हाथ की कलाई को बांयें पैर के टखने से एक रस्सी से मजबूती से बाँधा गया था । रस्सी सिर्फ इतनी ढीली थी कि एलन बस किसी तरह चल सकता था । वह न तो भागने का इरादा होने पर तेज भाग सकता और न ही नदी में तैरने की सोच सकता था ।

दाहिने हाथ से टट्टू की रस्सी पकडे और बांया हाथ बांये पैर से सटाये धीरे धीरे लगभग घिसटता हुआ एलन नदी के नजदीक पहुँचा ,उसने अपने खच्चर के मुँह पर प्यार से दो तीन थपकी दी और फिर उसकी रास छोड दी । खच्चर मुँह ऊपर उठाकर हिनहिनाया, थोडी देर खडा रहा और फिर नदी किनारे उगी घास चरने लगा।

एलन नदी के किनारे एक चट्टान के पीछे बैठ गया और बमुश्किल बांयें हाथ को खींचकर ऐसी स्थिति तक ले गया जहाँ से दाहिने हाथ को मदद मिल सकती थी । फिर दोनो हाथों की मदद से उसने पीठ पर बंधे पिट्ठू को खोला और उसे घसीट कर सामने रख लिया ।

सूरज अभी चढा नहीं था । उन्हें दो घंटे से अधिक समय खच्चरों की पीठ पर बैठे हो गया था । सामने कल कल करती पहाडी नदी का बर्फीला जल था, जो बीच में तेज प्रवाह के बावजूद, किनारों पर चट्टानों से टकराकर मन्द धाराओं में टूटकर बह रहा था , पूरे शरीर में सुख की झुरझुरी फैलाने वाली शीतल बयार थी, सब कुछ अलसाने वाला था । एलन से कुछ दूरी पर लगभग अर्द्ध चन्द्राकार वृत्त में सारे सवार नदी के किनारे बैठ गये । उनके खच्चर नदी के किनारे उगी घास चरने में मशगूल हो गये ।

पुलिस वालों में सिर्फ कोतवाल था जो चैतन्य था । वह जब चुल्लू में पानी भरकर अपने मँह पर पानी के छींटे मार रहा था तब भी इस कोण से घुटनों पर बैठा था कि बौछर पडने से बन्द आँखें जब खुलें तब नजरें एलन पर पडें । बाकी सवारों ने अपने अपने जूतों के तस्में खोल दिये थे , पेटियाँ ढीली कर दीं थीं और पगडियाँ भीगने से बचाते हुये किसी न किसी चट्टान पर रख दीं थीं । वे सभी बीच बीच में एलन को देख लेते थे ।

उन्होंने एलन को एक बडी चट्टान के पीछे जाते देखा । वह एक हाथ से पिट्ठू घसीट कर ले जा रहा था। उन्होंने उसे एक बडी चट्टान के पीछे उकडूँ बैठते देखा । उसका सिर्फ सर दिख रहा था । सभी मुँह अँधेरे उठकर चलने , कई घंटे खच्चर की पीठ पर बैठने से उत्पन्न थकान और नवजात सूरज की हल्की तपिश की उष्मा से अलसाये से अलग अलग बैठे अलग अलग क्रियायें सम्पादित करते रहे ।अचानक कोतवाल ने हवा में कुछ सूँघा । जिस तरह एलन अस्वाभाविक तेजी से नदी की तरफ बढ रहा था उसे कुछ खतरा सा लगा । एलन के दाहिने हाथ में कुछ था , दूर से सिर्फ सफेद सफेद सा कागज के टुकडों जैसा जिसे कोतवाल समझ नहीं सका पर इतना उसके समझ में आ गया कि कहीं कुछ होने वाला है जिसे नहीं होना चाहिये । जूते वापस पहनने का समय नहीं था । वह नंगे पैर अपने साथियों को ललकारता हुआ दौडा पर ब्रीचेज में कसा उसका भारी शरीर जब तक एलन तक पहुँचा वह अपना काम कर चुका था ।

कोतवाल रोक तो नहीं पाया पर उसकी समझ में तो आ ही गया कि एलन ने जिन चिन्दियों को नदी की तेज धार में बहा दिया है वे जरूर कुछ ऐसे महत्वपूर्ण दस्तावेज थे जिनका इस हत्या के मामले से गहरा सम्बन्ध हो सकता था ।

कोतवाल ने नदी की तेज धार को असहाय दृष्टि से देखा । कागज की चिन्दियाँ तेज धार में छोटी छोटी डोंगियों सी बही जा रहीं थीं ।

इसके बाद एलन की लात घूसों से पिटाई, उसकी मुश्कें बाँधे जाने और लगभग उछाल कर अपने टट्टू पर बिठलाकर मसूरी की यात्रा शुरू करने वाले काफिले के दृश्यचित्रों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी । मैं तो सिर्फ यह जानना चाहता था कि वे कौन से कागजात थे जिन्हें एलन ने चट्टान के पीछे उकडूँ बैठकर पिट्ठू में से निकाला था और जिनके अंशों को पढते पढते उसकी आँखें कई बार डबडबाईं थीं और फिर रस्सी बंधे अपने बाँयें हाथ और स्वतंत्र दहिने हाथ से मसल मसल कर उनकी चिन्दियाँ बनायीं और लगभग घिसटते हुये नदी के तट तक ले गया था ।

भूत के पास सिर्फ एक जवाब था । उसे नहीं पता कि उन कागजों में क्या लिखा था ।

मैंने भी जिद पकड ली । भूत को क्या नहीं पता ? या भूत अगर जानना चाहे तो उसके लिये क्या मुश्किल है ? काल और समय को व्यतिक्रमित करता हुआ भूत कहीं भी पहुँच सकता है , कुछ भी देख सकता है, क्या कुछ नहीं जान सकता ?

कई बार भूत की आवाज कमजोर पडी , मुझे लगा कि वह अब टूटा , तब टूटा , पर हर बार उसकी काँपती आवाज स्थिर हो जाती । वह नकार में सिर हिलाने लगता ।

मुझे रिप्ले बीन के भूत पर बेहद गुस्सा आ रहा था । कई बार मन किया कि सामने राकिंग चेयर पर बैठी , कई बार मजे में और कई बार घबराहट में झूलती रिप्ले बीन नामक इस बुढिया को नोच चोथ लूँ । मसूरी में आने के दूसरे ही दिन शाम को माल पर मैं मटरगश्ती कर रहा था और थक जाने पर सडक के किनारे लगी रेलिंग से सटकर खडा हो गया था । नीचे वादी में सफेद रूई की फाहों जैसे बादल टहल रहे थे, सूरज डूबने को था तथा सडक पर चहल पहल कम थी । थोडी दूर पर उकडूँ बैठे और अपने सामने रखी अँगीठी पर ठिठुरते हुये भुट्टा भूनते लडके से मैंने एक भुट्टा भूनने के लिये कहा और उसी के बगल में फुटपाथ पर लगी एक तिब्बती की दुकान पर सजे सामान देखने लगा । विचित्रता और विविधता से भरी दूकान थी । ऊनी कपडे, स्वेटर,रंग बिरंगे पत्थर, मालायें और अलग अलग चित्रों वाले पोस्टर । आज रिप्ले बीन को सामने राकिंग चेयर पर झूलते देखकर उनमें से एक पोस्टर याद आया ।

सूरज की किरणों और उम्र के अनगिनत सालों के थपेडों से झुलसी पहाडी ताम्बई त्वचा, साफ साफ पढी जा सकने वाली एक एक झुर्री और इन सबसे अलग समुद्र की गहराइयाँ नापती करुणा से लबालब आँखें जो कई बार भ्रम पैदा कर रहीं थीं कि उनके एक कोर से एक बूँद अटकी हुयी है और जिसे देखकर भ्रम होता था कि वह अब टपकी कि अब टपकी - उस पहाडी बुढिया का पोस्टर मुझे याद आया । ऐसा लगा कि बूढी रिप्ले बीन को सामने बैठाकर चित्रकार ने वह पोस्टर तैयार किया था।

बुढिया रिप्ले बीन के राकिंग चेयर पर आगे पीछे झूलते भूत को देखकर मुझे ऐसा क्यों लगा कि उसकी एक आँख की कोर पर एक आँसू अटका हुआ है !

मैंने अपना सिर झटका और अपनी समझ को लानत भेजी । भूत कभी नहीं रोते । वे मनुष्य से इसी अर्थ में भिन्न हैं कि वे चाहें भी तो नहीं रो सकते । शायद रोना ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है ।

वातावरण बहुत बोझिल हो गया था । मुझे पता था कि बिना इसे हल्का किये भूत से कुछ नहीं कहलवाया जा सकता । मैंने माहौल बनाने के लिये पुराना नुस्खा अपनाया । रिप्ले बीन से उसके पिता की बातें शुरू की ।

"मैडम कल डैडी आये थे ?"

"नहीं । कल नहीं आये थे । " रिप्ले बीन की आवाज अभी भी भारी थी ।

मैंने उसे सहज बनाने के लिये चिढाया-

"तुमने तो बताया था कि कल फिर डाँट रहे थे ?"

"कल नहीं परसों,"

पिता की चर्चा से वह खुलने लगती है,

"बूढा सठिया गया है । "

सौ साल का भूत अपने से पचीस साल बडे भूत को सठिया गया घोषित कर रहा है और अभी भी उसकी डाँट से डरता है । मुझे हर बार की तरह इस बार भी सुनकर मजा आया । पिछले कुछ दिनों में ही हुयी मुलाकातों की तरह आज भी उसने पिता की तमाम किस्से सुनाये ।

पहली बार मुझे एक भुलक्कड भूत मिला था जो उन प्रसंगों को दुहराता रहा जिन्हें पिछले दिनों वह सुना चुका था । यह उसकी अद्भुत किस्सागोई थी या उन प्रसंगों से जुडे मनोरंजक विवरण, मैंने उसे एक बार भी नहीं टोका कि मैं इसे सुन चुका हूँ । बल्कि कई बार तो किसी प्रसंग के सूत्र टूट जाने पर मैं उसे याद दिला देता और वह वहीं से शुरू हो जाती ।

पिछले कई बार की तरह इस बार भी मिलने पर पिता ने रिप्ले बीन को इस बात पर डाँट पिलाई थी कि क्यों उसने अपने जीवन के अंतिम वर्ष मसूरी के बाहरी इलाके में इस सौ साल पुराने खण्डहर हो चुके घर में बिताये थे ।

इस पर आश्चर्य तो मुझे भी था । जिस घर में पिता के साथ रिप्ले बीन के जीवन के अधिकांश वर्ष बीते थे उसके बारे में माल रोड वाला किताबों के दूकानदार ने सम्मान और आतंक के मिले जुले भावों से मुझे जो कुछ बताया था उससे एक ऐसे भव्य पहाडी विला की तस्वीर मन में उभरती थी जिसके स्थापत्य, इर्द गिर्द सलीके से उगायी गयी वनस्पतियों और अन्दर इस्तेमाल की गयी महागनी या बर्मा टीक के फर्नीचर- सबसे एक खास तरह की सुरुचि टपकती थी ।

ऐसे मकान को बेचकर रिप्ले बीन क्यो किराये के मकानों में भटकती रही ? अंतिम दिनों में लगभग खण्डहर जैसे इस मकान में रही थी जिसमें सिर्फ दो कमरे थे । एक बडा कमरा जहाँ बैठकर वह मुझे कारपोरल एलन की दुखांत प्रेमकथा सुना रही थी और दूसरा एक छोटा सा कमरा जो हमेशा बन्द रहता था और जिसमें रिप्ले बीन ने हमेशा मुझे यह कहकर जाने से रोका था कि उसमें सिर्फ कबाड भरा हुआ था ।

पिता की इस बार की डाँट पर भी रिप्ले बीन बस मिमियाकर यह कह पायी कि उसने उस आलीशान मकान को सिर्फ इसलिये बेचा ताकि वे अपनी कुबडी बहन और अर्द्धविकसित भाई की देखभाल कर सकें।

हर बार की तरह पिता इस बार भी उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हुये और हर बार की तरह इस बार भी पैर पटकते हुये चले गये । पिता की स्मृति ने शायद रिप्ले बीन को कुछ सहज किया। भूत की आँखों में फिर वही दोस्ताना शरारत दिखायी दी जिसका मैं आदी था । मैंने मौके का फायदा उठाया । "मैडम रिप्ले बीन क्या आपको यकीन है कि मि। जेम्स की हत्या कारपोरल एलन ने ही की थी ?"

मेरे अन्दर का पेशेवर पत्रकार जग गया था और मुझे लग रहा था कि अब दोस्ती वोस्ती का चक्कर छोडकर मुझे सीधे मतलब की बात पर आ जाना चाहिये । शायद मुझसे गलती हो गयी थी । भूत मुझसे इस तरह के सवाल की उम्मीद नहीं कर रहा था । उसका चेहरा भिंच गया और किसी तुनकमिजाज बुढिया की तरह उसने खामोशी अख्तियार कर ली ।

"मैडम रिप्ले बीन आप बतातीं क्यों नहीं कि मि। जेम्स की हत्या किसने की थी ?"

"मैडम रिप्ले बीन आप जानतीं हैं ---------। "

"मैडम रिप्ले बीन -----"

"मैडम रिप्ले बीन हत्यारा कौन था ?"

मेरी रणनीति काम कर गयी । मजबूती से दांतों को भींचे चेहरे की झुर्रियों पर आते उतार चढाव को रोकने का प्रयास करते हुये रिप्ले बीन यकायक फट पडी।

"मुझे क्या पता ? मैं थी क्या वहाँ पर ? मुझे नहीं पता हत्यारा कौन है ?"

"तुम्हें सब पता है । तुम हर जगह हो सकती हो । "

"मुझे कुछ नहीं पता । "

मैंने चौंक कर देखा । भूत के भिंचे चेहरे की बाँयीं आँख से एक बूँद टपकी। हो सकता है मुझे फिर भ्रम हुआ हो । पर एक बात तो साफ थी कि निशाना सही लगा था, थोडा दबाव डालने पर वह टूट सकती थी।

"कारपोरेल एलन ने देहरादून से आते समय पुलिस वालों को धोखा देकर जो कागज नदी में बहाये थे उनमें क्या लिखा था ?"

"मुझे नहीं पता । "

"तुम्हें सब पता है । तुम क्या नहीं जानती ?"

इस बार मैं चीखा । मैंने वकील और पत्रकार दोनों की भूमिकायें ओढ ली थी । मुझे लगा कि जरा से दबाव में सामने का गवाह टूट सकता था ।

"क्या बहाये गये कागज लडकी के खत थे जो उसने एलन को लिखे थे ?"

"मुझे नहीं पता। । " भूत ने घुटी घुटी आवाज में कहा ।

" सिर्फ हाँ या ना में जवाब दो । "

किसी घाघ वकील की कुटिल मुस्कान मेरे चेहरे पर चिपकी हुयी थी । कुछ कुछ फिल्मी कोर्ट रूम वाला दृश्य था ।

"मैं नहीं जानती । "

"कत्ल की रात एलन ने थोडा वक्त एक लडकी के साथ बिताया था कौन थी वह लडकी ?"

मैंने फिर से एक शातिर वकील की तरह उसकी आँखों में आँखें डालकर पूछा।

उसने अपनी आँखों नीची कर ली । एक कमजोर सा उत्तर मिला-

"मैं कुछ नहीं जानती । "

"मुझे सिर्फ हाँ या न में जवाब दो । "

मैंने लगभग चीखते हुये पूछा-

"वही लडकी थी न जिसके खत उसने नदी में बहाये थे?"

"मुझे नहीं पता । "

" हाँ या न ?"

इसके बाद जो घटा वह पूरी तरह अनपेक्षित था । मैं पहली बार ऐसे भूत के सामने बैठा था जो धीरे धीरे सुबक रहा था । हाँलाकि आँखें अब भी उसकी सूखीं थीं । मैं जानता था कि आँसूं मनुष्यों को मिली सौगात है । बदकिस्मत भूतों के ऐसे नसीब कहाँ कि उनकी आँखों से आँसू टपके । पर इस तरह रोना तो अन्दर तक छील देता होगा । मैंने अपनी सूखी खांसी की कल्पना की । दमे का मरीज होने के कारण अक्सर मुझे इस सूखी खांसी का दौरा पडता था जिसमें अन्दर का बलगम सूख जाता है और मैं खाँसते खाँसते बेदम हो जाता हूँ । आराम तभी मिलता है जब थोडा बहुत बलगम बाहर निकल जाता था । उसकी सुबकियाँ भी ऐसी ही लग रहीं थीं । हौले हौले काँपता शरीर बेचैनी और तडप से भरा हुआ था । जब तक आँसू नहीं छलकेंगे उसे चैन नहीं मिलेगा और आँसू उसकी किस्मत में कहाँ थे ?

पर भूत रोया । यह भी मेरे जीवन का विलक्षण अनुभव था । आँसुओं से तर झुर्रीदार चेहरा । आँसुओं से भीगते ही चेहरे का खुरदुरापन न जाने कहाँ गायब हो गया । एक स्निग्ध, कोमल, कातर चेहरा कुछ कहने के लिये व्याकुल था ।

रोने का यह क्षण अचानक अनायास आया। मेरे अन्दर का वकील पूछ बैठा-

"आखिर उस लडकी ने अदालत में आकर बताया क्यों नहीं कि हत्या के वक्त एलन उसके पास था- उसके अपने पास- उसके बिस्तर में । "

यही वह सवाल था जिसे सुनते ही भूत के ओठ फडफडाये, झुर्रियाँ कुछ और लटक गयीं और राकिंग चेयर पर टिकी उँगलियाँ कुछ अजीब सी हरकतें करने लगीं। पता नहीं यह घबराहट थी या अपनी रूलाई रोकने का प्रयास था जिसके चलते उसका पूरा शरीर काँपता सा लगा ।

जो कुछ भी था---था बहुत अस्वाभाविक ही । ऐसा लगा कि मेरी घूरती आँखों का ताब सह नहीं सका भूत और वह फट पडा-

"लडकी कायर थी। कितना चाहती थी कि चीख चीख कर दुनियाँ को बता दे कि एलन हत्यारा नहीं है पर डरती थी ------। "

"किससे डरती थी ?

मैं उसे एक मिनट भी सोचने का मौका नहीं देना चाहता था।

"अपने पिता से डरती थी । तुम नहीं जानते कि कैसा वक्त था ?"

इतना कहते कहते वह रोने लगा पर मुझे अपने सवाल का जवाब मिल गया ।

जबसे इस कहानी का श्रोता मैं बना था मुझसे यही गुत्थी नहीं सुलझ रही थी । आज का वक्त होता तो हिंदी सिनेमा के किसी क्लाइमेक्स की तरह अदालत में जज के फैसला सुनाने के ठीक पहले एक सुन्दर और बदहवास स्त्री भागती हुयी आती और बडे नाटकीय अन्दाज में हवा में हाथ लहराती हुयी चीखती,

"रुक जाइये जज साहब । जिसे आप फाँसी की सजा सुनाने जा रहें हैं वह तो पूरी तरह से बेकसूर है । "

फिर वह थोडी देर तक अदालत में मौजूद वकीलों और मुवक्किलों की उत्सुक फुसफुसाहट का आनन्द लेती, जज के आर्डर-आर्डर कहकर मेज पर हथौडा पटकने से उत्पन्न खामोशी को चीरते हुये हवा में नाटकीय अन्दाज से हाथ लहराते हुये घोषित करती,

"हुजूर जिस समय जेम्स का कत्ल हुआ था उस समय तो एलन मेरे पास था----- मेरे अपने शयन कक्ष में-------। " और फिर अपनी निगाहें झुका लेती ।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।

एलन अदालत में खडा होकर सिर्फ अपने निर्दोष होने की दुहाई देता रहा । उसने एक बार भी इतने महत्वपूर्ण साक्ष्य की तरफ अदालत का ध्यान आकर्षित नहीं किया और खामोशी से फाँसी के फन्दे पर चढ गया ।

एलन का आचरण तो मैं समझ सका पर लडकी को क्या हो गया था ? एलन उसे जिस बदनामी से बचाना चाहता था उसे क्या वह स्वयं नहीं ओढ सकती थी । जिसका प्यार पिछले कई महीनों से झंझावात की तरह उसके तन मन की झिंझोंड रहा था उसको चुपचाप फाँसी चढते कैसे देख पायी होगी वह ? क्या देहरादून के सेशन अदालत में चल रहे मुकदमे की जानकारी उस तक नहीं पहुँच पायी होगी ? ऐसा हो ही नहीं सकता । जेम्स की हत्या मसूरी की पहली हत्या थी और इस घटना से पूरा योरोपीय समुदाय इतना आन्दोलित था कि उन दिनों मसूरी टाइम्स और स्टेटसमैन सिर्फ इसी हत्या की खबरों से भरे रहते थे। अखबारों में वर्षों पाठकों के पत्र छपते रहे । लोगों के हत्या के कारणों और हत्यारे को मिलने वाले दण्डों को लेकर उत्तेजित पत्रों से अखबारों के पन्ने रंगे रहते थे । मुखपृष्ठों पर कचहरी में चलने वाली कार्यवाही के विवरण छप रहे थे, चर्च और ड्राइंगरूमों में सिर्फ इसी हत्या की चर्चा हो रही थी - ऐसा बिल्कुल संभव नहीं था कि लडकी को अदालत के कटघरे में खडे एलन की दुखांतिका के बारे में पता न चला हो । फिर कैसे वह चुपचाप सब कुछ झेलती रही ?

इस सवाल का जवाब सिर्फ भूत दे सकता था।

मैंने उसे चैन से रोने भी नहीं दिया ।

"अब पिता से ऐसा भी क्या डर ?" मैंने इस प्रश्न को तीसरी बार दुहराया।

रोते हुये भूत की आवाज सिर्फ आँसुओं से नहीं रूँधी । शायद यह झुँझलाहट और खीज थी जिससे उसकी भर्रायी हुयी आवाज टूट कर मुझ तक पहुँची ,

"वह अलग वक्त था । मल्लिका विक्टोरिया का वक्त । खास तरह की नैतिकता का वक्त । किसी लडकी के लिये यह कबूल करना कि वह विवाह के पहले किसी मर्द के साथ सोयी थी , बहुत मुश्किल था । तुम आज उस समय की कल्पना नहीं कर सकते । "

भूत ने थोडा दम लेने की कोशिश की ।

आँसुओं और हिचकियों का वेग कुछ थमा । मुझे लगा कि थोडी देर में वह कुछ स्थिर होगा तो मैं आगे बात करूँगा लेकिन अचानक जैसे कोई बादल फट पडा हो इस तरह उसने भिंची आवाज में फिर रोना शुरू कर दिया ।

"और वह कायर भी तो थी । " इतना ही कह पाया भूत । इसके बाद वह सिर्फ रोता रहा ।

मैंने चौंक कर उसे देखा । कहीं यह कनफेशन तो नहीं था ?

मैं कब तक बैठता ? भूत का रूदन किसी स्त्री के एकांत विलाप की तरह था । नि:शब्द लेकिन अन्दर तक मथ देने वाला । वह मेरे अस्तित्व से बेखबर सिर्फ रोता रहा- रोता रहा।

मैं समझ गया था कि अब हमारी दोस्ती के खत्म होने का मुकाम आ गया है । रूदन की स्वर लहरियों को धीरे धीरे पीछे छोडता हुआ मैं सिर झुकाये चुपचाप वहाँ से निकल गया ।

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